शनिवार, 16 मई 2015

रोज़ एक शायर आज नदीम सिद्दीक़ी

मुझको हँसा- हँसा के रुलाने लगे हैं वो ! 
मत पूछिये के कैसे सताने लगे हैं वो ! !

आए हुए तो उनको अभी दो घड़ी हुईं ! 
क्या हो गया किस बात पे जाने लगे हैं वो ! !

हमने ही उम्र भर कोई शिकवा नहीँ किया ! 
एहसान आज हम पे जताने लगे हैं वो ! !

ठुकराया था जिन्होंने कभी ज़र की चाह में ! 
फिर आज मुझको अपना बनाने लगे हैं वो ! !

नींदें चुराते हैं मेरी आ- आ के ख़्वाब में ! 
बरसों का थमा दर्द जगाने लगे हैं वो ! !

अश्कों से हँसते खेलते ये ज़िन्दगी कटी ! 
मय्यत पे आज अश्क बहाने लगे हैं वो ! !

जबसे सुना उन्होंने मोहब्बत का है मज़ार ! 
आ-आ के रोज़ फूल चढ़ाने लगे हैं वो ! !

डसने लगी हैं अब तो बहारें भी ऐ " नदीम " ! 
और जिस्मो-जाँ में आग लगाने लगे हैं वो ! !

 मोबाईल नंबर   +919953828206

नदीम सिद्दीक़ी 

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