हर शख़्स इस जहान में हैरान सा क्यों है !
इंसान जो कल तक था वो हैवान सा क्यों है ! !
वीरानी सी हर एक तरफ़ छाई हुई है !
क्या हो गया इस शहर को वीरान सा क्यों है ! !
हर लम्हा यही सोच , यही फ़िक्र , यही ग़म !
इंसान की जाँ लेना भी आसान सा क्यों है ! !
हर सिम्त अँधेरा है हर इक रात है काली !
इस दौर में हर रास्ता सुनसान सा क्यों है ! !
सहमा सा हर इन्साँ है " नदीम " आज के युग में !
लाशों की तरह आदमी बेजान सा क्यों है ! !
नदीम सिद्दिक़ी
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