मंगलवार, 19 मई 2015

रोज़ एक शायर आज नदीम सिद्दीक़ी

हर शख़्स इस जहान में हैरान सा क्यों है ! 
इंसान जो कल तक था वो हैवान सा क्यों है ! !

वीरानी सी हर एक तरफ़ छाई हुई है ! 
क्या हो गया इस शहर को वीरान सा क्यों है ! !

हर लम्हा यही सोच , यही फ़िक्र , यही ग़म ! 
इंसान की जाँ लेना भी आसान सा क्यों है ! !

हर सिम्त अँधेरा है हर इक रात है काली ! 
इस दौर में हर रास्ता सुनसान सा क्यों है ! !

सहमा सा हर इन्साँ है " नदीम " आज के युग में ! 
लाशों की तरह आदमी बेजान सा क्यों है ! !

नदीम सिद्दिक़ी

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