अस्सलामु अलैकुम आज एक नज़्म लिखा हु।
और ये एक दावत भी है।
तो आइये शुरू करते है।
आओ चलते है मस्जिद कुछ पाने के लिए,
इबादत करके अपनी आख़िरत बनाने के लिए।
बढ़ती तबाही देख कर लगता खुदा नाराज़ है,
आओ सब मिलकर चले खुदा को मनाने के लिए।
आज जो हमने न पढ़ी गर नमाज़े। दोस्तों,
कल क्या होगा पास महशर में दिखाने के लिए।
नमाज़ ही वो चीज़ है। राज़ी जिससे रब होगा,
मेरे नबी को भेजा है। ये सबको बताने के लिए।
ताज जिसके सर पे भी नमाज़ों का रखा होगा,
मलक आएंगे उसे जन्नत में ले जाने के लिए।
कितना खुबसुरत उस वक्त का मंज़र होगा ऐ हकीम
नबी जब आएंगे जामे कौसर पिलाने के लिए।
आओ सब मिल कर चले चले खुदा को मनाने के लिए,
इबादत करके अपनी आख़िरत बनाने के लिए।
हकीम दानिश मोबाईल नंबर +919997868744
माशयहा अल्लाह बेहतरीन पोस्ट । बेहतरीन लेख ।
जवाब देंहटाएंमाशयहा अल्लाह बेहतरीन पोस्ट । बेहतरीन लेख ।
जवाब देंहटाएंअल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं
जवाब देंहटाएंअल्लाह हर मुसलमान को नमाज़ी बनाये
बहोत अच्छी पोस्ट है भाई