बिना शोर के शोरगुल, भूचाल की क्या कीमत !!
रईसों की कद्र है सबको, कंगाल की क्या कीमत !!
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कविता कतई मुकम्मल नही कद्रदानों के बगैर,
खरीदार के बिना लाखो के माल की क्या कीमत !!
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चर्चा स्वयंवर का कर दे, तेरी हर मांग पूरी हो जाएगी,
बिना भिड़ के होने वाली हडताल की क्या कीमत !!
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Hakeem की दुआ लगेगी तुझे, और जख्म दे मुझे,
बिना मालदार मरीजों के अस्पताल की क्या कीमत !!
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फुर्सत में तराशा बदन बंजर है मुझ अंधे के लिए,
बिना नैनो के मिघनैनी नैनिताल की क्या कीमत !!
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सोमवार, 31 अगस्त 2015
रविवार, 30 अगस्त 2015
वास्कोडिगामा
ये सारी दुनिया का सबसे दिलचस्प ड्रामा है "गुलगुले !!
के जवानी का सनम बचपन का चंदामामा है "गुलगुले !!
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कविता की अमीरी मेरी रईसी तेरी गरीबी की यही मिसाल है,
वो ठहरी राधा रानी मैं कृष्ण और तु सुदामा है "गुलगुले !!
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कह दो जाकर भाभी माॅ से सलाम पैश करें हमारे हुजरे में आकर,
वो गर् जगत जननी सिता है तो तेरा भाई भी "रामा" है "गुलगुले !!
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ख्याल रखना तुम्हारे भरोसे ही अपनी धरोहर छोड़ जाऊंगा,
मेरी चाहत ही मेरी मिल्कियत मेरा वसीयतनामा है "गुलगुले !!
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खोज निकालूँगा, सात समंदर पार बसी हो या गगन की ऊंचाई में,
वो गर् सोने की चिड़िया है, तेरा भाई भी वास्कोडिगामा है "गुलगुले !!
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देते ।
राह तकतीं आंखों को, वो ख्वाब नहीं देते !!
ऑनलाइन होकर भी, वो जवाब नहीं देते !!
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हमने जब हक मांगा इंतज़ार की मजदूरी कर के,
जालिम कहने लगे, हम मजनुओं को हिसाब नहीं देते !!
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बेशक मेरी हर कविता फिजूल है, मेरी मोहब्बत की तरह,
हमसे ही शोहरतें कमाकर भी वो हमें खिताब नहीं देते !!
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मयखाने के दरबान ने कल ये कहकर खिलाफ़त कर दी,
हम उजड़ी रियासत के बिखरे आशिकों को शराब नहीं देते !!
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ईश्क की बेफिक्र मट्टी पलीत कर दे शख्सियत पर न उंगली न उठा,
हम दिल तो आसानी से दे देते है पर अपना रूवाब नहीं देते !!
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शुक्रवार, 28 अगस्त 2015
मलाल न होता
हम तुम मिलते जरूर फासला जो अंतराल न होना !!
मेरे होठों पर दर्द और तेरे होठों पर सवाल न होता !!
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मेरी हर नज्म में जिसका जिक्र भरी महफिल में होता था,
वो मेरी कद्र अगर करतें तो आज मलाल न होता !!
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शिद्दत की मोहब्बत ने मुझे सड़क पर ला दिया,
मैं धड़कने सहम कर खर्च करता तो कंगाल न होता !!
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दोष उनका भी नहीं दोस्त हम खुद ही कसूरवार है,
हम कदम फुंक फुंक कर रखते तो बुरा हाल न होता !!
क्या लिखूँ
पर्दानशीं यार का जुदा अंदाज़ क्या लिखूँ ?
उजड़ी रियासत बिखरा काम काज़ क्या लिखूँ ?
कविता के रंगों में सिमट गया है वजूद मेरा,
फिके फिके से पढ गए अल्फाज़ क्या लिखूँ ?
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नूरें यकीं था बेनूर ना होगी कभी लिखावट मेरी,
चमक उडतीं गई जाता रहा लिहाज़ क्या लिखूँ ?
महज़ कविता के लिए मैने दिल तक से बैर कर लिया,
रूठ गया मुझ से मेरा ही मिजाज़ क्या लिखूँ ?
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उसकी जिंदगी महफूज़ कर दूँ मेरी छोटी सी ख्वाहिश थी,
उसने पहले ही लिख दिया मुझे उम्रदराज क्या लिखूँ ?
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डरता हूँ वो फिरकी न लेने लगे मेरा ईमान जानकर,
वो दिल्ली की जग्गू और मैं पाकिस्तानी सरफराज़ क्या लिखूँ ?
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बेफिक्र हो जाओ मेरी आहट से हिजाब औढने वालियों,
के अब घायल हो चुका है शिकारी बाज़ क्या लिखूँ ?
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काफी है!
खुन में उबाल है, धडकनों में सरसराहट काफी है !!
मोहल्ला बैचैन हो उठें, कविता के पैरों की आहट काफी है !!
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किसी की जान लेना कोई बड़ा काम नही हम दौनों के लिए,
उसकी कातिल निगाहें और हमारी लिखावट काफी है !!
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के वो निकलीं है बेनक़ाब फिर भिड़ होगी कफन की दुकान पर,
शहर में दंगे करवाने को उसकी मुस्कुराहट काफी है !!
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कलाई
कविता की कलाई तो मैं कब का मरोड़ चुका !!
वो मुझ को छोड़ चुकी मैं उसको छोड़ चुका !!
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सीढियों पर हर रात कटोरा लेके खडा रहता हूँ,
भीख मांगु तो मांगु कैसे मंदिर तो मैं तौड चुका !!
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कमर पर लहराती चोटी, मिट्टी में चाहत का पानी अब कहाँ,
प्यास की आस में, वो मटकी तो मैं फौड चुका !!
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इस उम्मीद में की वो दहलीज़ पर आकर गालियों से नवाजे मुझे,
इंतज़ार है उसके बरसने का बादल को चिमटी तो मैं खौड चुका !!
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रविवार, 23 अगस्त 2015
मा
क्या यही मंजर देखना बाकी रह गया था मेरी माँ !!
सुबह ही तो तुझ को अस्पताल ले गया था मेरी माँ !!
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कुछ दैर और दम भरतीं तो मैं ममता से बेजार न होता,
पैसों का बंदोबस्त कर-कर आता हूँ कह गया था मेरी माँ !!
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हजारों रईश बसतें है इस कमजर्फ बस्ती में,
गरीबी का आसमान हम पर ही ढह गया था मेरी माँ !!
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थौडा दर्द और सह लेती के मैं रूपया भी लाया था,
मैं भी तो किस्मत की मार सह गया था मेरी माँ !!
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अफसोस कल पैसों की कद्र करता तो तु आज मेरे पास होती,
अमीरों की संगत में तेरा लख्ते-जिगर बह गया था मेरी माँ !!
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शुक्रवार, 21 अगस्त 2015
तुम्हारे ख़त
उसे जाँ से मैने चाहा
इसी हमराही मेँ आखिर
कहीँ आ गया दोराहा
फिर इक ऐसी शाम आई
कि वो शाम आखिरी थी
कोई जलजला सा आया
कोई बर्क सी गिरी थी
अजब आँधियाँ चली फिर
कि बिखर गए दिलो-जाँ
न कहीँ गुले-वफा था
न चरागे-अहदो-पैमाँ
पढा हमें ।
रईश, मोहब्बत का कर्जा चुकाना पढा हमें !!
बुलंद आशिकी को दिल में छुपाना पढा हमें !!
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महज़ चाँदनी की सितारों में शख्सियत की खातिर,
रवी रोशनी का हो कर भी टिमटिमाना पढा हमें !!
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उनका गमगीन मुखड़ा देख गुरूर छार-छार हो उठा,
उन्हीं से रूठ कर बैठे थे उन्हीं को मनाना पढा हमें !!
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इसिलिये के रोशन रहे उनके मकान की चमक,
मजबूरीयों में घर भी जलाना पढा हमें !!
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तोहमतें बरसाने वालें ज़मीर कत्ल की वजह तो पूछ लें,
सिर्फ़ 'कविता' के लिए कवी को दफनाना पढा हमें !!
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जब हुआ नहीं उनको हमारे इरादों का ऐतबार,
फिर यूँ हुआ के मरकर दिखाना पढा हमें !!
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बुधवार, 19 अगस्त 2015
क्या करें
जब तकदीर रूठ जाएं, तो इंसान क्या करें ?
सहमें हुए हैं होंठ और जुबान क्या करें ?
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तपती जमीन की ही दुआ थी के उसकी प्यास मिट जाए,
अब आ गई अगर सुनामी तो बेकसूर आसमान क्या करें ?
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मेरा घर बहा मेरा रूपया,पैसा चारों ओर ये रांडीरोना है,
के भई बह गई हमारी भी दिलों जान क्या करें ?
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ऐलान हो चुका मुआवजे के दावेदार नुकसान दर्ज करें,
अरे, कमबख्तों, बह गई हमारी कविता की दुकान क्या करें ?
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मैंने जब तोहमतें भरी उंगली किस्मत पर उठाई तो उसने कहा,
अबे, जब कविता खुद नहीं राजी तो बिचवान क्या करें ?
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मंगलवार, 18 अगस्त 2015
आएंगे
ना फकीर पूछने आएंगे, ना मालामाल पूछने आएंगे !!
ना ही मेरे अजीज मुझसे हाल चाल पूछने आएंगे !!
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जिंदगी अपनी कविता में मैंने कैसे जाया की मोहतरम,
ना कद्रदान पूछने आएंगे, ना कव्वाल पूछने आएंगे !!
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वो मेरी बर्बाद जिंदगी, मेरे अमाल पूछने आएंगे !!
मुझसे खुदा के बंदे कफन के अंतराल पूछने आएंगे !!
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उनके होठों पर होगा मेरे गुनाहों का हिसाब किताब,
सिर्फ़ फरिश्तें मुझसे कब्र में सवाल पूछने आएंगे !!
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सोमवार, 17 अगस्त 2015
कहां है
ये दौर जिस्म फरोशी है, सच्ची मोहब्बत का जमाना कहाँ है !!
यहाँ बस गंवाना ही गंवाना है, कुछ भी कमाना कहाँ है !!
कल तनहाइयों में मुझको घैर मेरे अरमान पूछतें है,
तेरी आशिकी की कमाई दौलत, कविता का खजाना कहाँ है !!
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मनादी शहर में कर दो, हम घुटनो के बल चलें आंऐ,
वो इक इशारा करें, जाकर उन्हें मनाना कहाँ है !!
मैं बुखारें ईश्क का मरीज हूँ, कभी भी मर जाऊंगा,
आकर खबर ले लो मेरी जिंदगी का ठिकाना कहाँ है !!
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मेरी नज़रों से आकर देख खडा है फरिश्ता मौत का दहलीज़ पर,
वो कोई रिश्वत ले तो दे दे, मेरे पास कोई बहाना कहाँ है !!
खुदा जाने चंद सांसों में, ये कैसे पुछ लिया उसने,
तुम जहाँ कहोगे ताजमहल बना दुंगी, कहो तुम्हें दफनाना कहाँ है !!
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मुझे मरने का गम नहीं, मैं उस पल खुशी से झूम उठता हूँ,
लोग जब उससे पूछतें है, तेरा वो पागल दिवाना कहाँ है !!
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रविवार, 16 अगस्त 2015
कसम
बे सूकून यादें, दर्द, जख्म, चोटिल निशानी की कसम !!
मुंतजिर हूँ तेरी वफा का मिजाज़ ए आसमानी की कसम !!
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कई हमसफ़र के रिश्ते मेरी दहलीज़ से लोट गए,
तेरी तलब, तेरी तमन्ना में गुजरती जवानी की कसम !!
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मेरी कलम भी तेरा ख्याल तेरा नाम रटतीं है,
मेरी बिखरी, बिखरी कविता, उल्झी कहानी की कसम !!
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तेरी खुशबू तेरे तसव्वुर से धडकनें बहकने लगती है,
तेरे पैरों की रफ्तार, एक्सप्रेस राजधानी की कसम !!
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हिंदुस्तान जिंदाबाद
हिंदुस्तान जिंदाबाद
मेरे देश के सहीद नौजवान जिंदाबाद !!
हिंदुस्तान जिंदाबाद, हिंदुस्तान जिंदाबाद !!
महात्मा गाँधी जिंदाबाद, अब्दुल कलाम जिंदाबाद !!
सरहदों के रक्षाधार निगहबान जिंदाबाद !!
राष्ट्रीय गीत जिंदाबाद, राष्ट्र गान जिंदाबाद !!
बाबा अंबेडकर का लिखा संविधान जिंदाबाद !!
हिंदू भाई जिंदाबाद, मुसलमान जिंदाबाद !!
सिख, ईसाई भाईयों का प्राणदान जिंदाबाद !!
गीता, कुरआन जिंदाबाद, रब दा फरमान जिंदाबाद !!
मंदिर, मस्जिद, गिरजाघरों का सम्मान जिंदाबाद !!
भाईचारे की सोच जिंदाबाद, दास्तान जिंदाबाद !!
निस्तोंनाबूद सियासी चाल करने वाला इंसान जिंदाबाद !!
जो सभी धर्मों को बांधें रखें वो ईमान जिंदाबाद !!
हिंदुस्तान जिंदाबाद, हिंदुस्तान जिंदाबाद !!
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कविता
ओए.....
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खुन एक मेरा तेरा पर जात की ऐसी तैसी है ।
तेरी शक्ल भी तो बुडबक मेरे थौबडे जैसी है ।
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तेरा बाप न्यूयॉर्क में माॅडल था या मां अमेरिका में ब्यूटी क्विन,
साला जिसको देखो कहता है 'भाई तेरा माल, विदेसी हैं ।
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कवी के साथ "कविता" जमती है शायरी नही,
सही 'पट्ठा, तो तू ही है तेरी बहन तो साली भेंसी है ।
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मैं ठहरा चमड़ी चौर, तु हुश्न की पुलिस वाली,
बाहों में कैद कर कर-कर कहती है सनम ये बैढियां कैसी है ।
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सोमवार, 10 अगस्त 2015
कितने अजीब है ये रिश्ते
जब हमें जीवन मिलता है ... रिश्तों में बंधने का सिलसिला शुरू होता है। मां मिलती है पिता मिलते हैं...भाई और बहन भी। हम किसी न किसी से रिशतों में बंधे ही रहते हैं। और बड़े होते हैं..तो दोस्त भी मिलते हैं, पर दोस्ती का रिश्ता थोड़ा अलग होता है, क्योंकि दोस्त हमें विरासत में नहीं मिलते..हम उन्हें खुद चुनते हैं..और ये विरासत के रिश्ते जो हमें मिलते हैं बड़े ही अजीब होते हैं...
पर ये लोग जो एक ही कोख से जन्मे..उन्होंने कितने रिशते बना लिए...भाई-बहन, भाई-भाई, बहन-बहन गहराई से सोचो तो लगता है कि ये रिशते तो स्वयं ईश्वर ने ही बनाए हैं...शायद यही वो अनमोल तोहफ़ा है जो ईश्वर ने सिर्फ हमें दिया है..जिसके बारे में हमें पता नहीं होता..जिसे हमने खुद नहीं चुना। जैसे हम अपने माता -पिता को नहीं चुनते ठीक वैसे ही अपने भाई और बहनों को भी..ये काम तो स्वयं ईश्वर करते हैं।
पर सोचा है बाद में क्या होता है..इन बहन और भाइयों के साथ अपना आधा जीवन बिताने के बाद
हम अपने जीवन की नई शुरुआत करते हैं। एक साथी ढ़ूढते हैं...शादी करते हैं और एक नये व्यक्ति के साथ जीना शुरू करते है.. अपने छोटे से संसार में खुश रहने लगते हैं। हमारे भाई और बहन..वो भी अपना-अपना जीवन कुछ ऐसे ही बिताते हैं, कोई जल्दी तो कोई देर से..अब सबके पास अपने अपने साथी हैं...खुद चुने हुए या फिर मां बाप के द्वारा चुने गए। सब अपना-अपना जीवन ऐेसे ही बिताते हैं, सबके अपने अलग-अलग, छोटे-छोटे संसार।
अब फिर सिलसिला चलता है नये रिश्तों के जन्म लेने का..कुछ नन्हे नन्हे रिश्ते आते हैं और किसी को बुआ,ताउ, किसी को चाचा, मौसी ..मामा बनाते हैं। जीवन चक्र ऐसा ही है..सुन्दर..बहुत सुन्दर, पर कहीं न कहीं वो तोहफ़े पीछे ही छूट जाते हैं...हमें पता ही नहीं चलता कि कब नये रिशते मज़बूत हो गए और कब उन अनमोल रिशतों की डोर ढ़ीली हो गई। याद ही नहीं आता कि कब हमने अपनी मां का आंचल छोड़ दिया..कब
अपने पिता के साथ आखिरी बार अपने मन की बात कही..कब अपनी बहन के साथ खिलखिलाये और प्यार से कब से नहीं पूछा कि 'तू कैसी है', कब आखिरी बार अपने भाई के गले लगे थे..याद ही नहीं आता। माता पिता तो फिर भी हमारा संबल बने रहते हैं...लेकिन वो छोटे और बड़े तोहफ़े...उनकी चमक तो धुंधला ही जाती है। आज कुछ रिश्ते रियल और कज़िन..फर्स्ट कज़िन..सैकण्ड कज़िन के नाम से जाने जाते हैं। कितने अजीब हैं न ये रिशते ... अंदाजा लगाएं कि दो सगे भाइयों के बच्चे कभी भी सगे नहीं कहलाये जाते..तो प्यार भी तो वैसा नहीं होगा जो उनके पिता के बीच था... ख़़ैर।
आज हम अहसास भी करते हैं तो ये कहकर अपने दिल को समझा लेते हैं कि वो अपने संसार में खुश हैं और हम अपने। फिर कभी अपने ही भाई-बहनों की छोटी-छोटी बातें हम अपने मन पर इस कदर लेते हैं कि उनके साथ बिताया बचपन, वो प्यार भरे पल भी याद नहीं आते। क्योंकि सच्चाई तो यही है कि हम हमेशा बुरी बातें ही याद रखते हैं और अच्छी बातें भूल जाते हैं। अब नतीजा तो यही आता है कि सब अपने-अपने में मस्त हैं..किसी को किसी से क्या...कभी कुछ बातें दूरियां बढ़ा देती हैं और कभी-कभी दूरियां ही इतनी ज़्यादा होती हैं कि वो बढ़ती जाती हैं..जब तक की कोई सार्थक प्रयास न किया जाये। हांलाकि हमारे त्यौहार एक हद तक पूरी कोशिश करते हैं इन रिश्तों को मज़बूती देने की। पर आजकल तो राखी भी भाई-बहन के मिले बिना ही मन जाती हैं..व्यस्तताएं ज़्यादा हैं...ख़ैर
पाश्चात्य संसकृति कितनी ही हावी हो जाये पर क्या हम अपने संस्कार भूल सकते हैं? शायद नहीं, फिर क्यों हम इन रिश्तों की कद्र नहीं कर पाते ...अरे ये रिश्ते नहीं हैं ...तोहफ़े हैं..जो हमें विरासत में मिले है...हमारी संस्कृति हैं..हमारी जड़ें हैं। प्यार, सम्मान और विश्वास के साथ बोये गए वो बीज हैं जिनके फल हमारी आने वाली पुश्तें चखेंगी।
वैज्ञानिक युग है भाई..हर कोई भावुक नहीं होता और आध्यात्म पर भी तर्क किये जाते हैं...तो ये सब बातें
मानने और न मानने वाले भी बहुत होंगें। पर इस बात पर तो सभी लोग सहमत होंगे कि जब कभी हमारी आंखों के सामने हमारे भाई-बहन के साथ खींचा गया बचपन का कोई फोटो आ जाता है तो हमारे चेहरों पर हमेशा मुस्हकुराहट होती है।
शुरुआत की गुंजाइश हमेशा होती है। और ये मुस्कुराहट उसी गुंजाइश का सुबूत है..तो फिर क्यों न फिर से उन तोहफ़ों की चमक बढ़ाई जाये..और अहसास कराया जाये कि वो कितने अनमोल हैं...जिन्हें हमने नहीं चुना..तोहफ़े हैं.. विरासत में मिले हैं।