छुपाए भी नही जाते , निकाले भी नही जाते |
मेरी आँखो से ये आँसू, सँभाले भी नही जाते |
.
मुहब्बत ने लगा के खोट जबसे, है मुझे छोड़ा
मेरी तकदीर के सिक्के, उछाले भी नही जाते |
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निकाला चाँद ने जबसे, मुझे महफ़िल से है यारो
सितारों के कभी दर पे, उजाले भी नहीं जाते |
.
मुजावर क़ब्र का मेरी, रफीक बन बैठा जाने क्यूं
चढाने हर जगह फूल, ह़ुस्न वाले भी नहीं जाते |
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उठी है टीस दिल मे दर्द के, उठते सवालो से
कहा से जख्म लाते हो, सँभाले भी नही जाते |
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: : : : : : Rahish pithampuri : : : : : :
शनिवार, 12 दिसंबर 2015
गुरुवार, 10 दिसंबर 2015
सांप
कभी जिनके लिए हमने भरोसे भी सँभाले थे |
हमी पर याद है उसने छुरी चाकू निकाले थे |
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डसा कमजर्फ ने अपने यकीनो को गिला तो हैं
मगर आस्तीन मे हमने हि अपने साँप पाले थे |
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गले का हार बन-बन के हमी से खूशबू लूटी है
खिलाफ़त मे खड़े अपनी हमारे ही निवाले थे |
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कफन मे बाँध कर हमको दफन एक रोज़ कर डाला
मेरी बर्बादियो पर इश्क़ ने लश्कर निकाले थे |
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न हमसे हाल पूछा ना वज़ह हमसे कभी पूछी
हमारे ऐब के साथी हमारी जात वाले थे |
बुधवार, 9 दिसंबर 2015
आजादी
सनम हम जान देकर इश्क़ की कीमत चुकाएॅगे
मुकर्रर आप दिल की रिहाई की रकम कर दो
शुक्रवार, 4 दिसंबर 2015
मैंने तो सुन लिया था, और तुमने ?
शायर बशर नवाज़ साहब ने लिखा था करोंगे याद तो हर बात याद आएँगी. तुम्हे क्या क्या याद है. बताओ तो. मुझे तो सब कुछ याद है, तुम्हारा मुझे थामना, मेरे लिए चिंतित होना और हाँ, शायद मन के किसी कोने में मेरे अहसास को घर देना. ये सब बस हुआ है. हो गया है. ठीक उसी तरह से जैसे दुनिया के सबसे बड़े डायरेक्टर ने कहा होंगा. अब तुम ये करो और हम कर बैठे. ऐसे देखो और हमने देखा, ऐसे छुओ और हमने छुआ. और उसने ये भी कहा था कि प्रेम करो. मैंने तो सुन लिया था. और तुमने ?
Rahish Pithampuri
Ittehad~e~adabइत्तेहाद~ऐ~अदब महफ़िल
बुधवार, 2 दिसंबर 2015
Mohabbat Ke Dange मोहब्बत के दंगे Hakeem Danish
शनिवार, 21 नवंबर 2015
चराग
मोहब्बत की लौ चुभने लगी जमाने को ।
आंधियां चल पड़ी हमारा चराग बुझाने को ।
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किसी के कंगन बुला रहे हैं छोड़ दो हमें,
मौत तैयार खडी है......गले लगाने को ।
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आरजू है कफन की हमसे लिपटकर सोने की,
हथियार उठाओ फना कर दो इस दिवाने को ।
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बहाने से आई थी बहाने समंदर ए ईश्क की लहरें
हमने बहाने से डूब कर गले लगा लिया बहाने को
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काश निकलें शेर का जनाज़ा शायरी की गली से
कविता भी मजबूर हो जाएं... नकाब उठाने को ।
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गुरुवार, 19 नवंबर 2015
मय्यत
कांधें से कांधा मिलाकर सबके साथी बन जाना ।।
हंस कर विदा करना, न जज्बाती बन जाना ।।
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सुरमा लगाकर ढांक देना मुझे सहरें की चादर से,
मय्यत उठाकर तुम मेरे बाराती बन जाना ।।
शनिवार, 14 नवंबर 2015
रोज़ एक शायर आज अंकित कुमार
ittehad~e~Adab इत्तेहाद~ऐ~अदब महफ़िल
रोज़ एक शायर आज #अंकित_कुमार
हर रिश्ते से नाता टूटा हर रिश्ते मे अकुलाहट लगी !!
जब उसके दरवाजे पे किसी और की बारात लगी !!
लगने लगे वादे सब झूठे, झूठी उनकी हर बात लगी !!
जब उनके हाथो मे मेहदी ना अंकित नाम लगी !!
लगी टूटने ख्वाब हमारी फूटी हमारी घर बार लगी !!
जब उनके माँगो मे सिन्दुर ना अंकित नाम लगी !!
झूठे लगे हमे इश्क मोहब्बत झूठी प्यार की बात लगी !!
जब उनके दरवाजे पे किसी और की बारात लगी !!
झूठी लगी वो हमको झूठी उनकी हर बात लगी !!
जब हमारे आँसू उनको खुशियों की सौगात लगी !!
झूठी लगी वो पल सुहाने झूठी हमको हर शाम लगी !!
जब उनके हाथो पे किसी और की हाथ लगी !!
-::-अंकित::-
गुरुवार, 12 नवंबर 2015
रोज़ एक शायर आज हकीम दानिश
ताज़ा ताज़ा
हमारे यहाँ भी आये वो जंगल राज बिहार जैसा
के मानव राज से बहुते ही तंग आ चुके है।
जो जुमले थे के वापस लाएंगे बाहर से जमा पैसा
अब तक उससे ज़्यादा जनता से लेके खा चुके है।
कोई पूछ ले पिछले महीने थे कहा साहब !!
बता नहीं सकते वो देशो के इतने लगा चुके है !!
के अब कोई फर्क पड़ता नहीं हमको नए जुमलों से
वो माइक पर खड़े हो कर इतना पका चुके हैं।
हकीम दानिश
मंगलवार, 10 नवंबर 2015
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दोस्तों में हकीम दानिश इस चैनल के ज़रिये मेने उन लोगो तक मदद पहुचाने के लिए शुरूआत की है जो भाई नेट के बारे में ज़्यादा नहीं जानते या जो चीज़े नहीं जानते उन चीज़ों के बारे में हिन्दी उर्दू में वीडियो बना कर यहाँ पोस्ट करना। और उन सब दोस्तों की मदद करना है। जो किसी वजह को लेकर इंटरनेट के मामले में पीछे रह जाते है। यहाँ में आपको हर रोज़ नए नए तरीके बताऊंगा। ताकी आप वो चीज़े जान सकें जो आप नहीं जानते। हैं। तो चैनल सब्सक्राइब करें ताकि आप इस चैनल से जुड़े रहें।
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रोज़ नयी शायरी रोज़ नए अशआर
शुक्रवार, 6 नवंबर 2015
धर्म और राजनीती
“मज़हब नही सिखाता आपस में बैर रखना”
उपर्युक्त पंक्ति महाकवि इकबाल की है. उन्हने कहा था की कोई भी मज़हब आपस में बैर रखना नहीं सिखाता. कोई भी धर्म हमें बुराइयों की ओर नहीं ले जाता, हममें घृणा या कटुता की भावना नहीं जागृत करता।
आजकल राजनीति में भी धर्म के नाम पर चुनाव लड़े जाते हैं. कट्टर धर्मांध तथा सत्ता लालच के लिए लोग धर्म की नकारात्मक परिभाषा देके सीधे-सादे व्यक्तियों को गुमराह करते हैं. यह एक लोकतांत्रिक देश है और हर व्यक्ति की अपनी-अपनी इच्छा होती है,अपनी आस्था होती है अपने धर्म के प्रति. हम किसी को किसी भी धर्म को अपनाने के लिए दबाव नहीं डाल सकते. यह जानते हुए भी की इश्वर एक है, लोगों ने भांति-भांति के धर्म बनाये, आज तो ना जाने कितने धर्म हो गए हैं,फिर उस धर्म को राजनीति की मदद से, पैसों के मदद से,प्रचार प्रसार के मदद से लोगों जनता में उसका विमोचन किया जा रहा है. स्थिति आज यहाँ आ पहुंची है की इन्सान इंसानियत को भूल गया है और मात्र धर्म को अपना सब कुछ मानकर मर मिटने को तैयार है. एक ऐसा धर्म जो इंसान से इंसान को बांटे वो किस प्रकार का धर्म है? मानवता की रक्षा करना और एक ईमानदार मनुष्य बनना ही सर्वोच्च धर्म है पर यहाँ तो धर्म कहते ही- हिन्दू, इस्लाम. सिक्ख, ईसाई, पारसी, जैन, इत्यादि ना जाने और कितने ही धर्म ज़हन में आ जाते हैं पर जो वास्तविक अर्थ है धर्म का वह ढूंढने से भी नहीं मिल पाता.
आज यह स्थिति आ खड़ी हुई है की लोगों को धर्म बदलने पर पैसे दिए जा रहे हैं. हिन्दू बनने पर ५ लाख, ईसाई बनने पर २ लाख,इस्लाम धर्म के लिए १ लाख और सिक्ख के लिए ३ लाख. यह सब सुनकर ऐसा लगता है मानो जैसे कोई व्यापार किया जा रहा हो. इस स्वतंत्र और लोकतांत्रिक भारत में जहाँ हर व्यक्ति को अधिकार है किसी भी धर्म को अपनाने का वहां धर्म बदलने के लिए जोर दिया जा रहा है. आज धर्मांतरण जैसा शब्द इतना बड़ा हो गया है की यह समझना कठिन हो जाता है की यह धर्मांतरण सही है या गलत? हिन्दू से इस्लामिक या ईसाई से हिन्दू बनने के लिए लोगों को न जाने कितने सवालों के जवाब देने पद रहे हैं. कई प्रमाण देने पद रहे हैं क्या यह सही है? साम्प्रदायिकता के नाम पर इतना बवाल क्या उचित है? इन पेचीदा सवालों का मन माफिक जवाब खोज पाना जरा कठिन है पर उम्मीद है की आने वाले कुछ दिनों में अगर इन विषयों पर निरंतर चर्चा की जाती रही तो जवाब जरुर मिलेगा.
Rahish pithampuri mushayra mehfil new video
Ittehad~e~adabइत्तेहाद~ऐ~अदब महफ़िल
Today mushayra of my city in pithampur indore 05/11/2015
Rahish pithampuri this is a my channel for shayri mushayra video my own. Video i am shayar and i always writing shayri peotri kavita
दोस्तों में रहीश पीथमपुरी और में यहाँ आपको अपनी आवाज़ में शायरी कविता ग़ज़ल
नज़्म वगैरा की वीडियो यहाँ पोस्ट करूँगा आप सब से दुआ की दरख्वास्त है।
ये मेरा ब्लॉग पेज है यहाँ से आप मेरव् नगमे मेरी कविताये पढ़ सकते है।
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शुक्रवार, 23 अक्तूबर 2015
शनिवार, 17 अक्तूबर 2015
मोदी
उफनता समंदर हूँ सारी लहरें झाड़ देता हूँ !!
छोटे-मोटे मोदी तो राह चलतें पछाड़ देता हूँ !!
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उखाड़ सको तो उखाड़ लो आ कर अंधभक्तो,
भरी महफिल में अपना झंडा गाड़ देता हूँ !!
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हिन्दी - उर्दू से जन्मा एक ऐसा तमाचा हूँ,
गलती से गाल छू लूँ तो उंगलियां उचाड़ देता हूँ !!
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शेरानी शख्सियत बाजू ए मर्दे मुजाहिद हूँ,
जहाँ पकड़ लूँ पाव-सेर गोश्त उखाड़ देता हूँ !!
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सुनामीयों का मालिक, तुफानों का शहंशाह हूँ,
हस्ती के साथ-साथ बस्ती उजाड़ देता हूँ !!
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Rahishpithampuri786@gmail.com
रविवार, 11 अक्तूबर 2015
बुधवार, 7 अक्तूबर 2015
मंगलवार, 6 अक्तूबर 2015
शनिवार, 3 अक्तूबर 2015
प्यार के गलियों में
गुरुवार, 1 अक्तूबर 2015
सोमवार, 28 सितंबर 2015
रविवार, 27 सितंबर 2015
शनिवार, 26 सितंबर 2015
गुरुवार, 24 सितंबर 2015
बुधवार, 23 सितंबर 2015
सलवार
गज़ब का नज़ारा अपने बिहार में है !!
कई प्रेमी डुब चुके कई मझधार में है !!
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मेरी तो आंखें भर आई जब उसने कहा,
जल्दी करले मजनूँ कई ओर कतार में है !!
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क्यूं फिजूल घुमता है मजा ढुंढने पगले,
आनंदी खजाना तो मेरी सलवार में है !!
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हाथ हटा, उभार महज़ वक्ते बर्बादी है,
बेवकूफ असली स्वर्ग तो निचे उतार में है !!
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काश मुझे बिहारी भाषा का ज्ञान होता
कसम से पूरी राम कहानी छाप देता....
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Rahishpithampuri786@gmail.com
मंगलवार, 22 सितंबर 2015
इल्जाम
जल्द ही मैं रुखसतें सफ़र ले लूँगा ।।
दो गज़ जमीं में अंधेरा घर ले लूँगा ।।
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तु डरना नहीं खुदा जब सजा दे बेवफ़ाओ को,
मैं सारें "इल्जाम" अपने सर ले लूँगा ।।
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Rahishpithampuri786@gmail.com
बुधवार, 16 सितंबर 2015
यादों के झरोखों से
बात उन दिनों की जब मैं बारहवीं कक्षा पास करके छुट्टियाँ बिता रहा था और मौज मस्ती का मौसम था. मैं उस वक़्त बड़ा खुश था. यूँ ही छुट्टिय बीत रही थी. कुछ दिन बाद ख्याल आया यूँ ही वक़्त को जाया करना ठीक नही होगा मैंने दो जगह बच्चो को टूयशन देना शुरू किया. थोडा पैसा भी मिलने लगा और कुछ घन्टे उसी में बीत जाते थे.
फिर आया जुलाई और मैंने ग्रेजुएशन में एडमिशन ले लिया. इसी बीच मुझे एक जगह और पढ़ाने का मौका मिला. यही वो जगह थी जहाँ मेरी ज़िन्दगी ने एक नयी रुख ली थी. जिससे मैं बिलकुल अनजान था.
इसी जगह पर एक लड़की आया करती थी जिससे मेरा टकराव हुआ और फिर दोस्ती फिर प्यार.
मुझे शुरुआत में ये न मालूम था कि मैं इस लड़की से बेइंतहा मोहब्बत करने लगूंगा. हम दोनों साथ में ही पढ़ते थे एक ही क्लास में, दो सब्जेक्ट हमारे सेम थे. साथ में क्लास करते थे और आना जाना भी लगभग साथ में ही था. यानि ये भी कह सकते है पुरे दिन साथ में रहते थे.
हम दोनों अलग अलग बैच में थे फिर भी मैं उसीके बैच में पढता था . अगर सीधे सीधे लफ्जों में कहे तों ये कह सकते हैं हमारा प्यार पूरी परवान और उरूज़ पर था.
हम अक्सर फ़ोन पर चैटिंग किया करते थे और अपनी दिलो की बात किया करते थे. हम कई बार अकेले में मिलकर अपनी दिलो की बात किया करते थे और घंटो उसकी बाहों में गुज़ार दिया करता था. उस वक़्त दिल पर जो रूमानी का मौसम छाया हुआ और जो चाहतों का एहसास था उन को लफ्जों में कैद करना मेरे लिए बहुत मुश्किल है .
जैसे आज मुझे लिखने का शौक है उस वक़्त उसको लिखने का बहुत शौक था और वो लिखती और मुझे पढ़ाती मुझे बहुत अच्छा लगता. मैं सोचता काश मैं भी लिख पाता इन रिश्तो पर, प्यार पर लेकिन लिखने का मन नहीं होता. पर आज जो कुछ भी लिखता हु उसीके चाहतो और मोहब्बत की देन है. आज ये आलम है रिश्तो और एहसासों के अलावा किसी और मुद्द्दो पर लिखने का मन ही नही होता है. जब भी लिखने की सोचता हु बस यही ख्याल आता है कि सिर्फ इसी लड़की के बारे में लिखू. मैं हमेशा सोचता हु अबकी बार इन चीजों पर नही लिखना है मगर जब कुछ लिखने को शुरू करता हूँ तों उसकी यादें एक समुन्दर की लहर जैसे आकर मुझे थपेड़े मारने लगती है और अपने लहर में कैद कर लेती है, फिर लिखना मुश्किल हो जाता है.
खैर आज बहुत दिनों बाद लिखा और उसकी याद का एक झरोखा आँखों के सामने से गुज़रा जिसे मैंने शब्दों में बयां कर दी.
बुधवार, 9 सितंबर 2015
मना कर गई
शायर...... की हस्ती तबाह कर गई !!
अल्फाज़ों की मल्लिका दगा कर गई !!
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अफसोस मुंतजिर भी न हो सका उसका,
की वो लौट के आने को भी मना कर गई !!
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बारूद पर टिका था मोहब्बत का आशिया,
एक चिंगारी सुलगी सब धुंआ कर गई !!
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ना मुनासिब हुई जिंदगी, होठ सिल गए,
चली... बेवफ़ा की छुरी बेजुबां कर गई !!
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धडकनें संभाल ली, दिल को कैसे समझाऊँ,
की वो लौट के आने को भी मना कर गई
।
Rahishpithampuri786@gmail.com
सोमवार, 7 सितंबर 2015
मुंशी
दिल कविता पर तो दिमाग फोटो पर रहता है !!
आंखों का जमघट उनकी उल्झी लटो पर रहता है !!
वो महारथी ही होगी शायद कहीं पर मुंशीगिरी की,
मेरे हर जुल्म का हिसाब उनके होठों पर रहता है !!
.
काश बांसुरी सुनकर फिर से राधारानी दौड़ी चली आए,
ये कृष्णा आज भी उम्मीद में खड़ा पनघटो पर रहता है !!
मुद्दत से नही सोया न वो मुझको सोने देतीं है,
मुझको एहसास जैसे उनकी हर करवटो का रहता है !!
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मुझे यकीन है रिश्तेदार कभी तो मान जाएंगे तेरे-मेरे,
मेरी माँ ने कहाः था बड़ो का प्यार छोटों पर रहता है !!
इतनी हिम्मत मुझमें कहाँ की खिलाफ माॅ के जा सकूं,
समुद्र कितना भी गहरा हो निर्भर तटों पर रहता है !!
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शायर चीख पढता है
चुडियां चीख पढती है के पायल चीख पढता है ।
नामे मेहबूब से तो हर घायल चीख पढता है ।
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मेरे जख्मों को न कुरेदो दुनियां के आशिको
कविता नाम ले कोई तो शायर चीख पढता है ।
सानिया मिर्जा
कई दर्द सहने होते है शायरी बच्चों का काम थौडी है !!
चर्चा मेरी मोहब्बत का भी है हम अकेले बदनाम थौडी है !!
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शिकस्त जरूर खाई है पर जिंदगी ऐसे ना काटेंगे,
हम आशिक है आशिक यारो कोई हजाम थौडी है !!
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हम लफ्ज़ों के बादशाह है कविता हमारी धरोहर है,
किसी के इशारों की कठपुतली या गुलाम थौडी है !!
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हूनर रखतें है हार कर भी मिर्ज़ा जीत लाने का,
हम सोएब मलिक है यारों इंजमाम थौडी है !!
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कीजे
बे - घर है समंदर -ए- आंसू, सफ़र क्या कीजे !!
लौट आती है दुआएं बनकर जहर क्या कीजे !!
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तलाश-ए हक़ीम जारी है हाथों में दिल लिए हुए,
जख्मी जख्मी है मेरा खुन-ए जिगर क्या कीजे !!
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ठोकर-ए हुश्न मुझे महल से फुटपाथ तक ले आई,
वो अब भी नूरें नशीं है मोहतरम मगर क्या कीजे !!
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दर्द ज़बान पर उतार लूँ गर वो महफिल से निकल जाए,
उसे अल्फाज़-ए-कद्र नही कविता नज़र क्या कीजे !!
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दफना देना मेरी लाश उसको पता चलने से पहले,
वो मेरी आशिकी से बेखबर रही उसे खबर क्या कीजे !!
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रविवार, 6 सितंबर 2015
बारिश
ऐ उम्मतें नबी हाथ उठा, गुजारिश कर
ऐ आसमान जाकर खुदा से, शिफारिश कर
तडप रहे हैं लोग प्यास और गर्मी से
ऐ मेरे मौला रहमतों वाली बारीश कर
आमीन सुम्मा आमीन.....
बुधवार, 2 सितंबर 2015
आर वन फाईव
तु अगर ब्रेकिंग न्यूज़ है तो हम भी रिपोर्ट लाइव हैं !!
तु अगर चीप कार्ड है तो हम भी पेनड्राइव हैं !!
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अपने आशिक का आशिकी का गुरूर ठीक नहीं,
तु अगर हिरो की करिजमा है तो हम भी आर • वन • फाईव हैं !!
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घढा
कुछ दिनों पहलें गांव गया था अपनी दादी के घर वहां सबसे लास्ट में दादी का मकान है और वहीं पर गांव का एकलौता कुंआ भी है ।
तो पैश है आज की नज्म उस शाम/राधा के नाम......
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वक्ते सहर शातिर निगाहों ने देखा एक हसीन मंजर !!
कुंएं को बडतें पैर, बलखाई कमर, रुखसार पर जुल्फों का खंजर !!
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वो लौटतें पहर उसका सिमटकर जानुओं में सिना छुपाना "हाय,,
एक हाथ से संभाला घडा दुसरें से संभाला दुपट्टा हुए अरमान बंजर !!
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सोमवार, 31 अगस्त 2015
किमत
बिना शोर के शोरगुल, भूचाल की क्या कीमत !!
रईसों की कद्र है सबको, कंगाल की क्या कीमत !!
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कविता कतई मुकम्मल नही कद्रदानों के बगैर,
खरीदार के बिना लाखो के माल की क्या कीमत !!
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चर्चा स्वयंवर का कर दे, तेरी हर मांग पूरी हो जाएगी,
बिना भिड़ के होने वाली हडताल की क्या कीमत !!
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Hakeem की दुआ लगेगी तुझे, और जख्म दे मुझे,
बिना मालदार मरीजों के अस्पताल की क्या कीमत !!
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फुर्सत में तराशा बदन बंजर है मुझ अंधे के लिए,
बिना नैनो के मिघनैनी नैनिताल की क्या कीमत !!
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रविवार, 30 अगस्त 2015
वास्कोडिगामा
ये सारी दुनिया का सबसे दिलचस्प ड्रामा है "गुलगुले !!
के जवानी का सनम बचपन का चंदामामा है "गुलगुले !!
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कविता की अमीरी मेरी रईसी तेरी गरीबी की यही मिसाल है,
वो ठहरी राधा रानी मैं कृष्ण और तु सुदामा है "गुलगुले !!
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कह दो जाकर भाभी माॅ से सलाम पैश करें हमारे हुजरे में आकर,
वो गर् जगत जननी सिता है तो तेरा भाई भी "रामा" है "गुलगुले !!
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ख्याल रखना तुम्हारे भरोसे ही अपनी धरोहर छोड़ जाऊंगा,
मेरी चाहत ही मेरी मिल्कियत मेरा वसीयतनामा है "गुलगुले !!
.
खोज निकालूँगा, सात समंदर पार बसी हो या गगन की ऊंचाई में,
वो गर् सोने की चिड़िया है, तेरा भाई भी वास्कोडिगामा है "गुलगुले !!
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देते ।
राह तकतीं आंखों को, वो ख्वाब नहीं देते !!
ऑनलाइन होकर भी, वो जवाब नहीं देते !!
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हमने जब हक मांगा इंतज़ार की मजदूरी कर के,
जालिम कहने लगे, हम मजनुओं को हिसाब नहीं देते !!
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बेशक मेरी हर कविता फिजूल है, मेरी मोहब्बत की तरह,
हमसे ही शोहरतें कमाकर भी वो हमें खिताब नहीं देते !!
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मयखाने के दरबान ने कल ये कहकर खिलाफ़त कर दी,
हम उजड़ी रियासत के बिखरे आशिकों को शराब नहीं देते !!
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ईश्क की बेफिक्र मट्टी पलीत कर दे शख्सियत पर न उंगली न उठा,
हम दिल तो आसानी से दे देते है पर अपना रूवाब नहीं देते !!
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शुक्रवार, 28 अगस्त 2015
मलाल न होता
हम तुम मिलते जरूर फासला जो अंतराल न होना !!
मेरे होठों पर दर्द और तेरे होठों पर सवाल न होता !!
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मेरी हर नज्म में जिसका जिक्र भरी महफिल में होता था,
वो मेरी कद्र अगर करतें तो आज मलाल न होता !!
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शिद्दत की मोहब्बत ने मुझे सड़क पर ला दिया,
मैं धड़कने सहम कर खर्च करता तो कंगाल न होता !!
.
दोष उनका भी नहीं दोस्त हम खुद ही कसूरवार है,
हम कदम फुंक फुंक कर रखते तो बुरा हाल न होता !!
क्या लिखूँ
पर्दानशीं यार का जुदा अंदाज़ क्या लिखूँ ?
उजड़ी रियासत बिखरा काम काज़ क्या लिखूँ ?
कविता के रंगों में सिमट गया है वजूद मेरा,
फिके फिके से पढ गए अल्फाज़ क्या लिखूँ ?
.
नूरें यकीं था बेनूर ना होगी कभी लिखावट मेरी,
चमक उडतीं गई जाता रहा लिहाज़ क्या लिखूँ ?
महज़ कविता के लिए मैने दिल तक से बैर कर लिया,
रूठ गया मुझ से मेरा ही मिजाज़ क्या लिखूँ ?
.
उसकी जिंदगी महफूज़ कर दूँ मेरी छोटी सी ख्वाहिश थी,
उसने पहले ही लिख दिया मुझे उम्रदराज क्या लिखूँ ?
●
डरता हूँ वो फिरकी न लेने लगे मेरा ईमान जानकर,
वो दिल्ली की जग्गू और मैं पाकिस्तानी सरफराज़ क्या लिखूँ ?
●
बेफिक्र हो जाओ मेरी आहट से हिजाब औढने वालियों,
के अब घायल हो चुका है शिकारी बाज़ क्या लिखूँ ?
●
Rahishpithampuri786@gmail.com
काफी है!
खुन में उबाल है, धडकनों में सरसराहट काफी है !!
मोहल्ला बैचैन हो उठें, कविता के पैरों की आहट काफी है !!
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किसी की जान लेना कोई बड़ा काम नही हम दौनों के लिए,
उसकी कातिल निगाहें और हमारी लिखावट काफी है !!
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के वो निकलीं है बेनक़ाब फिर भिड़ होगी कफन की दुकान पर,
शहर में दंगे करवाने को उसकी मुस्कुराहट काफी है !!
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Rahishpithampuri786@gmail.com
कलाई
कविता की कलाई तो मैं कब का मरोड़ चुका !!
वो मुझ को छोड़ चुकी मैं उसको छोड़ चुका !!
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सीढियों पर हर रात कटोरा लेके खडा रहता हूँ,
भीख मांगु तो मांगु कैसे मंदिर तो मैं तौड चुका !!
.
कमर पर लहराती चोटी, मिट्टी में चाहत का पानी अब कहाँ,
प्यास की आस में, वो मटकी तो मैं फौड चुका !!
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इस उम्मीद में की वो दहलीज़ पर आकर गालियों से नवाजे मुझे,
इंतज़ार है उसके बरसने का बादल को चिमटी तो मैं खौड चुका !!
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Rahishpithampuri786@gmail.com
रविवार, 23 अगस्त 2015
मा
क्या यही मंजर देखना बाकी रह गया था मेरी माँ !!
सुबह ही तो तुझ को अस्पताल ले गया था मेरी माँ !!
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कुछ दैर और दम भरतीं तो मैं ममता से बेजार न होता,
पैसों का बंदोबस्त कर-कर आता हूँ कह गया था मेरी माँ !!
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हजारों रईश बसतें है इस कमजर्फ बस्ती में,
गरीबी का आसमान हम पर ही ढह गया था मेरी माँ !!
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थौडा दर्द और सह लेती के मैं रूपया भी लाया था,
मैं भी तो किस्मत की मार सह गया था मेरी माँ !!
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अफसोस कल पैसों की कद्र करता तो तु आज मेरे पास होती,
अमीरों की संगत में तेरा लख्ते-जिगर बह गया था मेरी माँ !!
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Rahishpithampuri786@gmail.com
शुक्रवार, 21 अगस्त 2015
तुम्हारे ख़त
उसे जाँ से मैने चाहा
इसी हमराही मेँ आखिर
कहीँ आ गया दोराहा
फिर इक ऐसी शाम आई
कि वो शाम आखिरी थी
कोई जलजला सा आया
कोई बर्क सी गिरी थी
अजब आँधियाँ चली फिर
कि बिखर गए दिलो-जाँ
न कहीँ गुले-वफा था
न चरागे-अहदो-पैमाँ