शनिवार, 23 मई 2015

***मेरी सोच***

हो गर शाम का मंज़र घर जाएँ तो अच्छा है
दर्द जब हद से गुज़रे आँख भर जाएँ तो अच्छा है

कभी गर हो ज़िन्दगी में अपनों से लड़ाई
उस मौके पे फ़राज़ हम हार जाएँ तो अच्छा है

मुहब्बत में लोगों को बस रोते ही देखा है
बिना इश्क़ के ज़िन्दगी गुज़र जाए तो अच्छा है

जो दिखे ख्वाब में होते हुए अपनों से जुदाई
या खुदा वह ख्वाब बिखर जाएँ तो अच्छा है

चाहें भले लग जाये कई अरसे गुज़रने में
हो राहें मंज़िल की जिस तरफ उधर जाएँ तो अच्छा है

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