जब कुल्हाड़ी से कटा जंगल में लकड़ी का बदन
तब कहीं जाके बना काग़ज़ पे चिट्ठी का बदन
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उम्र भर दूरी बना रक्खी थी मिट्टी से मगर
बाद मरने के मिला मिट्टी में मिट्टी का बदन
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बेटी ने ऐसा भी, जाने क्या लिखा ससुराल से
आंसुओ से धो दिया है माँ ने चिट्ठी का बदन
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होके पलकों में गिरफ्तार गले मिलती हैं
आंखें आंसू से कई बार गले मिलती हैं
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अब सगे भाई से भाई यूं गले मिलता है
जैसे तलवार से तलवार गले मिलती हैं
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खंजर दिखा के सबको लगाते थे धार हम
गर्दन हमारी आपसी रंजिश मे कट गई