शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2016

जोधा अकबर

मुहब्बत हम जताएँगे जलालुद्दीन सी कब तक,
कभी जोधा बनो तुम भी जरा किरदार में आओ |

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गुरुवार, 25 फ़रवरी 2016

बुधवार, 24 फ़रवरी 2016

सुबह

दुनिया तो भुला देगी ही तू भी मुझे भुला,
जैसे की भुला देती है ख़्वाबों को ये सुबह |

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मंगलवार, 23 फ़रवरी 2016

रोज़ आतें है

तुम्हारी याद  के  जेवर  चुराने  रोज़ आतें  है |
हमारे  ख्वाब  में  डाकू  दिवानें  रोज़ आतें  है |

हमें मजनू  समझ  कर मारते है  गाँव के बच्चें,
हमारे जख्मों को पत्थर दिखाने रोज़ आतें है |

करोड़ो आज भी शहरी  यहाँ ग़ुरबत नहीँ भूलें,
शहर  से  गाँव  में चादर  चड़ाने रोज़ आतें है |

हमें सब पीठ फिरतें ही कहेंगे सिरफिरा आशिक,
मगर इस सिरफिरे को मुंह लगाने रोज़ आतें है |

अड़े है ज़िद पे तूफां भी फना कर दूँ चराग-ए-इश्क़,
मेरी हिम्मत की लौ को आजमाने रोज़ आतें है |

वो

गज़ल के तर्क से उठता धुआँ पहचानती है वो |
मेरे हर शेर को अपनी हकीकत  मानती है वो |

उन्हें कोई न सिखलाए दिलों से खेलना 'अय्युब,
वफाओं से मेरी खिलवाड़ करना जानती है वो |

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सोमवार, 15 फ़रवरी 2016

लूट ली

कातिलों ने फिर से शौहरत लूट ली |
एक  बस्ती   से  शराफत   लूट  ली |

चीखतीं  चिल्ला  रही  थी "अस्मतें,,
ज़ालिमों ने फिर भी इज्ज़त लूट ली |

मिन्नते   करते   रहे   वो  रात   भर,
डाकुओं  ने  जिन से  दौलत लूट ली |

चम  चमाते   थे  मुहल्ले   में    सभी,
हादसे  ने  सब  से  राहत   लूट  ली |

जब  खबर  आई  सुबह अखबार में,
वाकिये  ने  खूब  जिल्लत  लूट  ली |

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रविवार, 14 फ़रवरी 2016

14th February

जान का फिर रिस्क भी वाजिब नहीं |

बेवफा  से  इश्क़   भी   वाजिब  नहीं |

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सोमवार, 8 फ़रवरी 2016

जमाना

आ गया  कैसा  जमाना  जान  घबराने  लगी |
अब फटीचर लड़किया भी कार से आने लगी |

जिस उमर  मे कांपते  थे हम  मुहब्बत नाम से
उस उमर की बच्चियाँ अब इश्क़ फरमाने लगी |

दूध के  दांतों  से  पहले  टूट  जाती दिल लगी,
चाँद को  मेहबूब  सुरज  आग बतलाने लगी |

अब नही  रहती शरारत  गुलबदन के  होठ पर,
गुलबदन के  होठ दुनिया  चूस कर खाने लगी |

इस बला   के  साथ  फोटो  खिंचने  के   वास्तें,
उस बला  के आशिकों में लूट  मच जाने लगी |

बंदिशो  को  छोड़कर  शर्मों  हया जाने लगी,
चूसकर  होंठो  से शर्बत जिस्म पर आने लगी |

खूब देता  है तरक्की  सर्विसों का  दौर भी,
फोन पर ही दुल्हनों की नत उतर जाने लगी |

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