शनिवार, 16 मई 2015

रोज़ एक शायर आज हकीम दानिश

उनकी अंदाज़-ए-नज़र हम कहाँ तक समझ पाते,
वो बाते हमारी करते है निगाह कही और कर के।

1)  हमारे मुक़ाम के पते गवा गए 
हम जहाँ से चले थे वही को आ गये

 हकीम

2) अपने गिरेहबान में भी झाँका करो कभी-कभी 
किसी दूजे पर गर्द झाड़ देना असां बहुत होता है

 हकीम

3) हमने भी आज इतना साहस जुटा लिया है 
किसी हकीकत से न मुकरेंगे वादा रहा अपना

 हकीम

4) नजाने क्यूँ लोग इसकदर कतराते है 
दिल कि बात जुबां पर बड़ी मुश्किल से लाते हैं

 हकीम

5) जहान भर में नज़र आयी मुझे उदासी है 
कोई दिखे बिना गम के ये दीद प्यासी है

 हकीम

6) घरती कि घुटन और तड़पता आसमान देखा 
खुद के गम से ज्यादा मैंने शहर में गमज़दा देखा

 हकीम

7) निखरे चेहरो के फीके जस्बात देखे हैं 
इंसान इस शहर में कई बेऔकात देखे हैं

 हकीम

8) फिरता रहा दिन भर ख्याल बेसुरूर था
आंधियो ने क्यूँ घर गिराया मेरा मैं तो बेक़सूर था

 
हकीम
 

9) मेरी सोच से अक्सर ही जुदा होता है 
ये मेरा दिल जो सीने में छिपा बैठा है

हकीम

10) आज तेरा जिक्र मेरे ख्यालो ने किया मुझसे 
फिर आंसू निकल पड़े सब्र का बाँध तोड़ कर 

हकीम

11) ये सोच कर नींदे अंधेरो में टहलने चली गयी
 शायद किसी मोड़ पर तुम्हारा दीदार हो जाए 

12) दिल कि वीरानियो में भी साया जिसका मौजूद रखा 
वो तुम ही हो जो मुझे मुकम्मल करने आया है 

हकीम

13) तुममे हैं वही बाते, वही लहज़ा, वही चाहत, वही अदा
मुद्दत से जिसको मैंने अपनी सोच से सजाया है 

हकीम

14) यूँ तो कुछ मुश्किल नहीं था 
जब तलक तू जिंदगी नहीं था 
तेरे सिवा है आसान सब मगर 
तुझे भूल पाना कभी मुमकिन नहीं था 

हकीम

15) आलम-ए-तन्हाई ने जब लबो से तेरा नाम दिया 
मैं भी क्या करती बेसब्र धड़कन को थाम लिया 

हकीम

16)मेरी ख्यालो ने हर शब गुफ्तगू किया
तुम्ही को चाहा और तुम्हारी आरज़ू किया

हकीम

17) छत की ऊंचाइयों से दुनिया देखने वालो 
इक बार सोच की बुलंदियों से दुनियाँ देख कर देखो

हकीम

18) आँखों आँखों में नया अफ़साना बन जाने दो 
तुम्हारे दिल को मेरा पता-ठिकाना बन जाने दो

हकीम

19) तेरे आने न आने से फर्क क्या पड़ता है 
तेरी उम्मीद मरी हुई है मुझमे बस तू जिन्दा है 

 हकीम

 20) शायद! किसी जानवर ने वैहशियत यूँ की होगी 
जो हश्र यहाँ आदमी ने आदमी की होगी

हकीम

आपकी शायरी की तारीफ अभी बाकी है
हाथ चूम लू ये किरदार अभी बाकी है।

हकीम

22) सपने नींद के हाथो से छूट गए 
फिर क्या गिरे और गिर के टूट गए 

हकीम

23) तुम थे या कोई ख्याल था मेरा 
    तुम्हे सुना तो दिल गुनगुनाने लगा

हकीम

आसमा के सारे सितारो को चुनकर 
तेरी तस्वीर फिर से सजाने लगा 

हकीम

24) मैं सज़दे में जब भी सर झुकाऊँगी 
दुआ करुँगी कि तुझे कोई गम न हो 

हकीम

25) उजली शाम के खातिर सितारा चुनती हूँ 
कभी तुझे.. कभी तेरा अफसाना.. बुनती हूँ 

हकीम

26) ख्वाबो के गर्द मेरे पलकों से झड़ जाने दो
हकीकत से रुबरु हो मुझे और निखर जाने दो  

हकीम

27) चुका कर कीमत साँसों की जिंदगी खरीदती गयी 
मोहोब्बत सेत में मिली फिर भी संभाली न गयी 

हकीम

28) रुस्वा हो खफा हो क्या हो 
जाओ खुश रहो तुम जहाँ हो 
मिलेगा क्या फेरबदल करके बातो में
तुम कहो कि मैं बेवफा हूँ 
मैं कहूँ कि तुम मेरी खता हो
हकीम दानिश रुद्रपुरी

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