*ग़ज़ल*
उठ उठकर किसी का अब'इंतज़ार क्या करूँ
किसी के लिए दिल अपना' बेक़रार क्या करूँ
चराग़ लेकर भी अब दिखती नही' वफ़ा लोगो में
चोट खाया हूँ बहुत'किसी पे अब ऐतबार क्या करूँ
तौहीन है मोहब्बत की नाम लूँ तेरा' महफ़िल में
नाम लेकर तेरा अब मैं' तुझे सरे बाज़ार क्या करूँ
हो गया हूँ परेशान बहुत इस बेवफा दुनिया से
किनारे हूँ समन्दर के'लहरो का इंतज़ार क्या करूँ
करता हूँ मोहब्बत फ़कत तुझसे' ऐ जाए बहार
तू बता ज़िन्दगी अपनी' गुल ऐ गुलज़ार क्या करूँ।
राईटर~गुलज़ार राजा
0 comments: