सोमवार, 29 जून 2015

सच है 100%

मचलती, मदहोश मेरी बाहों में लुडक कर देख लो ।
जवानी भी एक पकवान है जरा चख कर देख लो ।
.
एक रास्ता है जैसे आनंद के सागर में गोते लगाने का,
यकीन न हो तो तकिया पैरों के बीच रख कर देख लो ।
Rahishpithampuri786@gmail.com

रविवार, 28 जून 2015

कही......

तेरे रोम,रोम में आशिकी उतर न जाएँ कहीं ।
बचा के रखना ये रातें निखर न जाएँ कहीं ।

वक्त के दानव ने कई जिस्म और घमंड चुर किए,
मोतियों की तरह तेरा भी हुश्न बिखर न जाएँ कहीं ।

मेरी चाहत के बिस्तर को नीलाम करने वाली,
दुआ कर के मेरी बद्दुआ संवर न जाएँ कहीं ।

रोक लो शोरगुल अखबारों को गर् उसकी विदाई करनी है,
कल उसकी शादी में मेरी मौत की खबर न जाएँ कहीं ।

Rahishpithampuri786@gmail.com

शनिवार, 27 जून 2015

मेरे गांव का गरीब शराबी

मेरे गांव का गरीब शराबी

यही सोच कर रख देता हु शराब की बोतल,
के आज तो गुज़र गया इसे कल ही पिऊंगा।

मेरे गांव का एक गरीब शराबी को समर्पित

शुक्रवार, 26 जून 2015

बुधवार, 24 जून 2015

दे मुझे ☆★

दर्द ए मोहब्बत की "दवा,, दे मुझे ।
ऐ मौला जल्द से जल्द "शिफा,, दे मुझे ।

बिछड़ कर मुझसे वो भी "बिलख,, रही होगी,
ऐ हवा कान में आकर "सुना,, दे मुझे ।

सुखंदरों को कौन दे रहा है "खिताब ए इश्क,,
मेरे यार अपनी आंखों से वो "मंजर दिखा,, दे मुझे ।

"तबाह,, कर दूँ जाकर उसकी शादी का "खेमां,,
ऐ "बिमार बिस्तर,, एक बार "उठा,, दे मुझे ।

मौत के "आगोश,, में हम सो गए जिसका "नाम,, रटकर,
वो मुझको याद कर रहे हैं "ऐ हिचकी,, "जगा,, दे मुझे ।

यकीनन सारा "शहर शरीक,, होगा "मय्यत,, मे मेरी,
पर क्या वो भी आई है, "ए बेजान,, दिल "धड़क,, कर बता दे मुझे ।

Rahishpithampuri786@gmail.com

शुक्रवार, 19 जून 2015

रमज़ान

जन्नतुल फिरदौस का अरमान दिखा सकता है ।
भारत आज छोटा पाकिस्तान दिखा सकता है ।

इस जुमा नमाज़ीयों से मस्जिद भरी होगी,
ये करिश्मा सिर्फ़ माहे रमज़ान दिखा सकता है ।

अजाब ए कब्र के राहगीर, तेरे गुनाहों का रास्ता,
पुलसिरात का खुनी कब्रिस्तान दिखा सकता है ।

पुछना है तो उस दाड़ी वाले से पुछो गुमराह लोगों,
वो मौलाना तुम्हें मौत का मकान दिखा सकता है ।

औकात तेरी क्या है मासुम रोजेदार के सामने,
वो मुर्दा दिलों में भी जिंदा जान दिखा सकता है ।

हैरत नही गर मेरी आँखों में तेरी सुरत उतर आए,
आईना नमाज़ी को रोजेदार इंसान दिखा सकता है ।

Rahishpithampuri786@gmail.com

हराम ☆★

हराम ☆★

शैतान से मिले या साथियों से,
मेरे शहर को हर चीज़ हराम चाहिए ।

साफ पानी, गद्देदार चटाई, लाइटिंग,
और पंखों का सही इंतजाम चाहिए ।

बाद एलान ए सुन्नत के, खड़े लोग
नमाज़ न पड सके तब अहसास हुआ,

जाहिल, आखिरत के राहगीरों को,
मस्जिद में भी आराम चाहिए ।

Rahishpithampuri786@gmail.com

गुरुवार, 18 जून 2015

जाऊं

वक्त के कीमती कांटो में बंट जाऊँ ।
कब्र के तन्हा सूकून में सिमट जाऊँ ।

थक गया हूँ जिंदगी के नखरे संभाल कर,
हो मलेकुल मौत का इशारा और निपट जाऊँ ।

इंतज़ार मे हूँ की जिंदगी कब तलाक दे,
और कब मैं मौत की चादर में लिपट जाऊँ ।

हिसाब ए कब्र में जन्नतुल फिरदौस की रोशनी आए,
फरिश्तें सवाल करें और मैं मोहम्मद रट्ट जाऊँ ।

☆★rahishpithampuri786@gmail.com☆★

फेसबुक

कुछ लोग दुर ही रहे तो बेहतर होगा.......

रात-दिन फेसबुक-फेसबुक खेलते है लोग ।
पोस्ट पे पोस्ट, पोस्ट पे पोस्ट पेलते है लोग ।

बौरा जाते है हम एक पोस्ट की टिप्पणी सूचनाओं से,
ना जाने कैसे दिनभर नोटिफिकेशन झेलते है लोग ।

एट्ठो कुतिया नही पूछती इनकी पोस्ट को,
और कृतियों की पोस्ट पर रेलते है लोग ।

घर में आटा नही है,  दाल के ठिकाने नही है,
और रियासतों की रोटी फेसबुक पर बेलते है लोग ।

मर्द औरताना लिबास में हसरते पूरी कर रहा,
उसी को गर्भवती करने रात भर टहलते है लोग ।

Rahishpithampuri786@gmail.com

बारिश स्पेशल

........मेरी पड़ोसन के "नाम,,

बादलों कहर बरसाओ के आज खता सरेआम कर लूँ ।
उसकी बाहों में ऐसा उलझूं के सुबह से शाम कर लूँ ।

बारीश में भिगकर वो तपती दहलीज़ पर बैठी है,
हो इजाजत तो सामने अपना मुकाम कर लूँ ।

थक गया हूँ उसका भिगा बदन निहारते-निहारते,
वो एक इशारा कर दे के थोडा आराम कर लूँ ।

औकात है हुश्न सिर्फ़ बिखरे बिस्तरों की अमानत है,
बरसने का वादा करो तो छतरी का इंतजाम कर लूँ ।

उतार फेंको इन हिफाजत के बुढे पहरेदारों को,
ताकी नौजवां रियासत मै अपने नाम कर लूँ ।

Rahishpithampuri786@gmail.com

रिश्तो की हत्या

आज के हमारे युवाओं को न तो भविष्य की तनहाइयों की फिक्र है, न हीं जिंदगी की वीरानियों की परवाह, क्योकि वो आज में जीता है। इसी सोच के चलते वो रिश्तों की अहमियत को इस कदर नजरअंदाज कर रहा है। यही वजह है कि न अब रिश्ते टिकाऊ होते है, न ही होता है उनमें कमिटमेंट। किसी भी रिश्ते की बुनियाद होती है प्यार और विश्वास। यदि ये दोनों ही चीजें रिश्ते में न हो, तो वो रिश्ता महज समझौता बनकर रहा जाता है। आज हम जिस तेजी से रिश्ते बनाते है, उसे तेजी से उन्हे तोड भी देते है, क्योकि रिश्ते बनाते समय हमें खुद ही नहीं पता होता है कि आखिर ये रिश्ता कब तक टिकेगा। पिछले 10 सालों में तलाक के मामले कुछ शहरों में दोगुने हो गए तो कही-कही इनमें तीन गुना बढोत्तरी हुई है। जहां 90 के दशक में तलाक के औसतन 1000 मामलें हर साल सामने आते थे, वहीं अब ये संख्या बढकर 9000 हो गई है। अधिकतर मामलों में सामंजस्य की कमी या पार्टनर की बेवफाई को ही तलाक का आधार बनाया गया। बदलती लाइफस्टाइल, बढती प्रोफेशनल आकांक्षाएं, न्यूक्लियर फैमिली, रिश्तों में बढती अपेक्षाए ही इन बढती तलाक दरों की मुख्य वजहें हैं । आज महिलाएं भी तलाक की पहल करने में पीछे नहीं है। अगर रिश्ते में जरा-सी भी कमी या अनबन नजर आती है, तो बयाय कोई समाधान निकालने के तलाक को ही अपनी आजादी का आसान रास्ता मानकर लोग रिश्ते तोडने में हिचकते नहीं। अपनों का साथ, प्यार का एहसास जिंदगी को खुशनुमा बना देता है, जीवन में थोडी-बहुत तकरार भी जरूरी है, इसी का नाम तो जिंदगी है, वक्त रहते जिंदगी को संभाल लिया जाए तो बेहतर है, वरना ऎसा न हो कि हम जब गिरे, तो कोई थामनेवाला ही न हो, हम जब रोएं तो किसी का कंधा सिर रखने के लिए न हो।

आज के दौर में रिश्तो में कडवाहट डालने काम ये सोशल मीडिया बखूबी कर रही है...ये ऐसा इसलिए क्यूंकि लोग ऐसे मामले में सेंटी हो जाते है ऐसे मामलो में...
एक उदाहरण देके बताता हूँ.....
जैसे कोई एक शादी शुदा जोड़ा है जो काफी खुश है और जीवन अच्छे से चल रही है. जो पति है वो फेसबुक यूज़ करता है अब जाहिर सी बात है कई दोस्त भी बनेंगे और बाते भी होंगी उसमे महिलाएं भी हो सकती है...हो सकता है किसी महिला से कोई रिश्ता बन जाये जैसे की बहन का.
अब जब ये चीज़ पत्नी देखती है तो वो बुरा मानती है ऐसा अक्सर सभी पत्नियाँ करती है...अब वो लाख समझाए मगर पत्नी नहीं मानती है और इसी में बात तलाक तक आ जाती है...
अब या तो फेसबुक का इस्तेमाल ही छोड़ दे या फिर......
यही चीज़ उन पत्नियों के साथ भी होता है अगर वो फेसबुक का उपयोग करती है....
इसलिए जो भी हो हर चीज़ को गहराई से देखनी चाहिये...रिश्तो में शक जैसी चीज़ नहीं होनी चाहिए, रिश्तो की अहमियत को समझे और उसको निभाए भी....इस दौर की तो ये हालत हो गयी है कोई रिश्ता बनाना ही नहीं चाहता....चाहे वो दिल्लगी का हो या दोस्ती का....
हर रिश्ता विश्वास पर टिका होता है। आपको अपने साथी पर विश्वास करना चाहिए। अगर आपके रिश्ते में विश्वास नहीं होगा तो आप चाहकर भी एक दूसरे के करीब नहीं आ पांएगे। विश्वास के बिना कोई भी रिश्ता नही टिक सकता। किसी भी नतीजे पर पहुंचने से पहले एक मौका जरूर दे।
आप कितने ही प्रैक्टिकल हो, लेकिन जीवन में किसी मोड पर एक साथी, एक हमसफर की जरूरत जरूर महसूस होती है। जीवन का ये सूनापन फिलहाल ग्लैमरस लाइफस्टाइल और आर्थिक कामयाबी के बीच नजर न आ रहा हो, लेकिन कहीं ऎसा न हो कि जब ये अकेलापन नजर आने लगे, तब तक देर हो चुकी हो।


मंगलवार, 16 जून 2015

ढेरों पैसा कमाने से सफल इन्सान नहीं बन जाते

ढेरों पैसा कमाने से सफल इन्सान नहीं बन जाते
व्यक्ति की, सदैव अतृप्त रहने वाली भौतिक कामनाएं उसके सात्विक चित्त और अमूल्य चरित्र को पतन के गर्त में पहुंचा देती हैं। रुपये-पैसे के आधार पर खड़ा कृत्रिम जीवन जीने की अंधी लालसा से ही हमारी अंदर की शांति लुप्त हो रही है। कुछ प्राप्त हो गया तो प्रसन्न हो गए, कुछ छिन गया, नहीं मिला तो दुखी हो गए। ढेर सारा पैसा कमाने से हम सफल इन्सान नहीं बन जाते। पैसा कमाने के साथ उसका मकसद भी नेक होना चाहिए, क्योंकि एक अच्छा मकसद ही हमंे हकीकत में अमीर बनाता है। हम सच्चे अमीर तभी बनते हैं, जब लोग हमारा सम्मान करते हैं, हम पर भरोसा करते हैं। वास्तविक आनंद की अनुभूति केवल वे ही कर सकते हैं, जिन्होंने व्यर्थ के आकर्षण से अपने को मुक्त कर लिया हो। संत के इन वचनों से सेठ को शांति का रास्ता मिल गया।

संयम अपने आप नहीं आता, उसके लिए साधना करनी पड़ती है। लालसाएं अपने आप कम नहीं होतीं, उनके लिए प्रयास करना पड़ता है। जीवन की चिंता और पदार्थ के मोह से अपने आप मुक्ति नहीं होती, खुद को मुक्त करना पड़ता है।

दहेज का दर्द

नहीं चाहिए मोटर गाड़ी,
नहीं चाहिए बंगला-साड़ी
हम घाघरे में ही रह लेंगे
बापू, हम क्वांरी रह लेंगे।।

नहीं चाहिए बनें दुल्हनिया
नहीं चाहिए सास-ननदिया
हम-तुम संग सब सह लेंगे
बापू, हम क्वांरी रह लेंगे।।

गोटे वाली चुनर न चाहें
मांग में हम सिंदूर न चाहें
हम बिन कंगन भी जंच लेंगे
बापू, हम क्वांरी रह लेंगे।।

हम दोनों सखियों-सी रहेंगे
आपस में न लड़े-झगडेंगे
तेरी सयानी बिटिया बनेंगे
बापू हम क्वांरी रह लेंगे।।

मोहम्मद सरवर अली खान

सोमवार, 15 जून 2015

इतने नादान हो फिर भी दिल लगाते हो

इतने नादान हो फिर भी दिल लगाते हो
इतने नाजुक हो, क्यूं पत्थर से टकराते हो

रु-ब-रु आती है वो तो छुप जाते हो
इतने प्यासे हो कि पानी से घबराते हो

आरजू पा ही गए तुम हुस्ने जानां की
तुम भी रातों में तन्हा सा गजल गाते हो

शोला भड़का है दिल के सनमखाने में
चिरागों की तरह खामोश नजर आते हो

रविवार, 14 जून 2015

क्या है ☆★

क्या है ☆★

लौंडे चिकने-चपट दिख रहे
.... इतनी सालों को मस्ती क्या है ।
बन जाते हैं खस्सी बकरें
.... एकाध मेमनी इनसे फंसती क्या है ।

हमें भी एक खुबसूरत, हंसीं, जवां
.... फुलझड़ियां भा गई है,
हमें इससे क्या मतलब
.... उसकी फिरकापरस्ती क्या है ।

कल रात जब कलाई थामी उसकी
.... तो खामखां चीख पडी़ ।
कमबख्त चुडियां न जाने
.... उसकी लगतीं क्या है ।

जवाब ए इजहार के बजाय
.... मुसकुरा कर जाने लगी
हमने तपाक से बाहों में भर कर कहा
.... जवाब दे साली हंसती क्या है ।

उसके सुर्ख होठ मुझपर
.... बादल बनकर गरजे
कमीने छोड़ मुझे दो टके के
.... शायर तेरी हस्ती क्या है ।

मैं शागिर्द ए कामदेव हूँ
.... नाम और असलीयत से रईश
नोटों के बंडल से तेरा मुंह लदा दुंगा
.... पैसा ही लेगी ना बरसती क्या है ।

गुरुवार, 11 जून 2015

सवाल ☆★

फिरकापरस्त मुस्लिम नाव के किनारे क्या होंगे ।
फिरका ही बस सहारा है तो बे सहारे क्या होंगे ।

मौत के आगोश में मेरे यार मुझे कहकर छोड गए,
तुम अपनी जात के नही होते तो हमारे क्या होंगे ।

कहीं सिया कहीं सुन्नी तो कहीं जिहादी है,
या खुदा फिरकों की मस्जिदों के मिनारे क्या होंगे ।

एक कयामत आ गई है भाई से भाई लड रहा,
तो उस आग उगलने वाले दज्जाल के नजारे क्या होंगे ।

Rahishpithampuri786@gmail.com

बुधवार, 10 जून 2015

लश्कर डूबो देगा ।

मुझको उसकी जुदाई का मंजर डूबो देगा ।
मेरी दुल्हन दोस्ती का रहबर डूबो देगा ।

कल जिसे बैठकर तेरा किस्सा सुनाया था,
मेरी जिंदगी में जहर वहीं अजगर डूबो देगा ।

सज-संवर ले चाहें जितना लाल-पिले रंगो से,
तेरी हल्दी मेहंदी को नालियों में मेहतर डूबो देगा ।

यकीन था मुझको तेरी मोहब्बत में दम नहीं,
मेरी आशिकी का शौक सारा लश्कर डूबो देगा ।

आज मेरे ही रिश्तेदार मेरे अब्बा से कह गए,
लौंडा इश्क में पड गया है तेरा घर डूबो देगा ।

मेरे आंसुओं के प्यासों मनादी जश्न में कर दो,
इसके आंसूओ में सच्चाई है बहकर डूबो देगा ।

सदमे में मुझको देख मेरा यार कहता है,
तु गमों का बादल मत बन पुरा शहर डूबो देगा ।

Rahishpithampuri786@gmail.com

शनिवार, 6 जून 2015

पगली

8 दिनों की मेहनत के बाद आखिरकार में कामयाब हुआ,
पैश है एक नज्म.....

■☆□☆□ पगली □☆□☆■

□☆हवाओं जाकर ऐलान कर दो फिरकापरस्ती में,
ये मौत का तूफां रूकेगा उनकी बस्ती में ।□☆

इक हसीन दास्तां, किस्सा सुनाता हूँ आवाम,
दौर-ए-गर्दीश ने जिसको दे दिया "पगली" का नाम ।

बेबस, लाचार, असहाय "पगली" रहती थी ।
अपनी धुन मे गुनगुनाती कुछ कभी न कहती थी ।
जुल्म-ए-तकदीर सारे हंस के "पगली" सहती थी ।
खून के आँसूओं से हरपल आंख उसकी बहती थी ।

जिल्लत जमाने की बेचारी जाने कितनी झेलतीं ।
टुटी चप्पल उलझे-उलझे बालों से वो खेलतीं ।
फट चुके थे कपड़े मुरझाए से सारे होठ थे ।
मौका-ए-हवस में शहर के सारे रंगी कोट थे ।

क्या कहूँ के यार मोटरकार जब वो देखतीं ।
फौरन ही पत्थर उठाकर कार पर वो फेंकती ।
मैंने चाही जाननी उसकी इस हालत की वज़ह ।
पहूंचा उसके पास और कहने लगा कुछ बेवज़ह ।

देखा उसको गौर से वो बडबडाने थी लगीं ।
मेरे आशिक आऊँगी ये राग गाने थी लगीं ।
तु ही मेरी जान है तु ही मेरे दिल का करार ।
एक ही बस शेर "पगली" गा रही थी बार-बार ।

□☆हवाओं जाकर ऐलान कर दो फिरकापरस्ती में,
ये मौत का तूफां रूकेगा उनकी बस्ती में ।□☆

लोगों से मैंने सुना क्यों खो चुकी वो होशों हवास ।
पहले उसके जिस्म पर था मोहब्बत के रेशों का लिबास ।
Rahish नाम के लड़के पर लुटाती थी अपना वो शबाब ।
उसके साथ जिने के सपने सजाती थी वो जनाब ।

घर से निकली गुल से "गुलनार" खिलने के लिए ।
पहुंच गई बाजार को वो उससे मिलने के लिए ।
मिलने में सडक का ट्राफिक मजबूरी करता था बयां ।
इस तरफ "गुलनार" थी और उस तरफ था नौजवां ।

महबूबा के दिदार को मन में तूफां था उठ रहा ।
ट्राफीक में लाचार आशिक मिलने को था घुंट रहा ।
बेसब्र प्यार का मारा जब था बिच रोड से जा रहा ।
सामन मौत का कार में था बैठ करके आ रहा ।

मजबूरी और तड़प में बढाए आगे जब उसने कदम ।
खून के लाल धब्बों में लिपट गया वो मोहतरम ।
मौत की जालिम तलवार आखिरकार चल गई ।
तेजी से आई कार और आशिक को कुचल गई ।

छोड़कर "गुलनार" को rahish जब जाता गया ।
बस तभी से लब पर उसके आ गए थे ये बयां ।

□☆हवाओं जाकर ऐलान कर दो फिरकापरस्ती में,
ये मौत का तूफां रूकेगा उनकी बस्ती में ।□☆

तब से चखना चूर थे आंखों के सारे ही ख्वाब ।
बड़ गई दिवानगी जाता रहा हुश्नो शबाश ।
फिर किसी दिन मुझको एक मंजर नज़र आया ।
कार को पत्थर मारने का फीर से पागलपन उतर आया ।

तेजी से जा रही थी दुर पगली से वो कार ।
पगली भी दौडी जा रही थी करने को अब उसपर वार ।
रोड पर शायद खडा था मौत का वो बादशा ।
आने वाला है नज़र अब फिर से कोई हादसा ।

दोस्तों ये दास्तां अब खत्म हो जाने को है ।
और हमेशा के लिए "पगली" भी सो जाने को है ।
पडकर मेरे यार बेशक बेचैनी तेरी बड़ गई ।
पिछे से आई कार और "पगली" के उपर चड गई ।

जिने मरने का अपना वादा वफा वो कर गई ।
बीच चौराहे में rahish नाम लेकर मर गई ।

□☆हवाओं जाकर ऐलान कर दो फिरकापरस्ती में,
ये मौत का तूफां रूकेगा उनकी बस्ती में ।□☆

Rahishpithampuri786@gmail.com

*माँ*

ज़िन्दगी में खुश रहूँ हमेशा'मैं
यही मेरी माँ की मन्नत थी।

बिन देखे जिसकी तारीफ़ सुनी
"गुलज़ार" वही मेरी जन्नत थी।

गुलज़ार राजा अंसारी

शुक्रवार, 5 जून 2015

**बेवफा यार**

खुद को बावफा मुझे बेवफा का इलज़ाम दिया है
हाँ उसने ये ज़ख्म मुझे ज़माने में सरेआम दिया है

शबे तन्हाई सुबह की याद शाम की बेबसी
फ़राज़ ये सारे दर्द उसने मुझे इनाम दिया है

मैं ग़म की उस दहलीज़ पे आके बैठा हूँ इस वकत
हर लम्हा याद-ए-जलन का उसने काम दिया है

अब मिलता है तो बहोत मज़ाक बनाता है मेरा वो
जिसने अरसा पहले दिल अपना मेरे नाम किया है

हो सके तो मुहब्बत से तोबा कर लो यारों
किसी ने बेइन्तहां भरे बाजार में मुझे बदनाम किया है

मिलना ☆★

मिलना ☆★

मोहब्बत के खुशनुमा आसार में मिलना ।
मुझसे जब भी मिलो तो प्यार में मिलना ।

मैं शहर के सारे शरीफ तुमको दिखाऊंगा,
आकर मुझसे कभी चांदनी बार मे मिलना ।

अनारकली को चुनवाई गई दिवार में मिलना ।
शाहजहाँ के प्यार मुमताज की मजार में मिलना ।

मजनूँ की कसम लैला तुझे दुनिया घुमाऊंगा,
आकर मुझसे कभी मेरी कार में मिलना ।

राँझा को पडे़ पत्थरों की बौछार में मिलना ।
फराद के बहाए दुध की मझधार में मिलना ।

होठों से नही आंखो से तुझे मेरी जां पिलाऊंगा,
आकर मुझसे कभी शराब के बाजार में मिलना ।

विरान जंगलों में गूंजती चिंखों पुकार में मिलना ।
एक बार तो सुनसान सड़क के उस पार में मिलना ।

ये तराशा हुआ बदन पसीने से तरोतर हो जाएगा,
आकर मुझसे कभी होटल चारमीनार में मिलना ।

रानी रूपमती के महल से उंचे उभार में मिलना ।
जंग ए दुश्मनी के बाद मुझे उपहार में मिलना ।

मैं अकबर हूँ इश्क की दुनिया का गर् यकीं न हो,
आकर मुझसे कभी जोधा के किरदार में मिलना ।

Rahishpithampuri786@gmail.com

गुरुवार, 4 जून 2015

*ग़ज़ल*

कभी तो ऐसे भी' नखरे मुझे दिखाए ग़ज़ल
ज़रा सी बात पर' बच्चों सी रूठ जाए ग़ज़ल

ये नस्ले नो भी गज़ब है'समझ ना पाए ग़ज़ल
अगर किताब में पहुंचे तो'धूल खाए ग़ज़ल

हमेशा मैं ही ग़ज़लो को ग़ज़ल सुनाता हूँ
कभी तो ऐसा हो' मूझको ग़ज़ल सुनाए ग़ज़ल

कभी सताए मुझे' काफ़िए नए देकर
कभी रदीफ़ ने दे के आज़माए ग़ज़ल

कभी तो मेकादाए मीर और ग़ालिब से
छलकता जाम अदब का'मुझे पिलाए ग़ज़ल

हमेशा मेरी तो यही' कोशिश रही "अकरम"
ग़ज़ल पढ़ो तो' ज़माने में फेल जाए ग़ज़ल

राईटर~अकरम नगीनवी

सोमवार, 1 जून 2015

लानत है.......☆★

लानत है.......☆★

शैखी बघार लोग होशियारी धर के बैठते है ।
अमल से कोसों दुर थोबड़ा कर के बैठते है ।

होली मे पानी बचाओ के रट्टेधारी अफसोस,
अपने कुलर के गले तक पानी भर के बैठते है ।

Rahishpithampuri786@gmail.com

आज की शायरी

आज की शायरी

आज की शायरी

तेरे बिना मेरी ज़िन्दगी एक अधूरी सी कहानी है !!
बिन तेरे में सुखा दरिया उसमे कहा पानी है !!

मेने बस तुझको ही चाहा पर तुझको ना पा सका !!
बस एक तू ही नहीं बाकी तो दुनिया अपनी दीवानी है !!

कोई क्या रोकेगा मुझको मेरी कहानी लिखने से !!
मुझको अपनी दास्तान दुनिया को सुनानी है !!

शायर  हकीम दानिश चुम्मी वाले

सडक छाप ☆★

सडक छाप ☆★

न बात करो अंधभक्तों की
..... वो सारे कायर है ।

हम उन्हीं के खिलाफ चली
..... बंदुक के फायर है ।

शहर में आग लगाने को
..... हमारे शब्द ही काफी है,

फिर क्या हुआ गर् हम
..... सडक छाप शायर है ।

Rahishpithampuri786@gmail.com