मंगलवार, 19 मई 2015

रोज़ एक शायर आज नदीम सिद्दीक़ी

आ जाओ दिल उदास है वीराँ है ज़िन्दगी ! 
आलम ये है के मौत का उनवाँ है ज़िन्दगी ! !

दिल की शिकस्तगी की शिकायत भी क्या करें ! 
ख़ुद अपने इन्तिख़ाब पे हैराँ है ज़िन्दगी ! !

इक बावफ़ा का साथ हो जिसके नसीब में ! 
उसके लिए बहार ब- दामाँ है ज़िन्दगी ! !

बदले हुए निज़ाम का आलम ही और है ! 
अब पूछिये न कितनी परेशाँ है ज़िन्दगी ! !

ऐ रहबराने मुल्क मुझे तुम ही कुछ बताओ ! 
क्यों अम्न की फ़ज़ा से गुरेज़ाँ है ज़िन्दगी ! !

अब आशियाँ किसी का जलाया न जाएगा ! 
दिल साफ़ है तो दर्द का दरमाँ है ज़िन्दगी ! !

एक एक ज़ख़्म तोहफ़ा है उनका ही ऐ " नदीम " ! 
उनके करम से रश्के - गुलिस्ताँ है ज़िन्दगी ! !

- - - - - नदीम सिद्दीक़ी - - - - -

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