शुक्रवार, 10 जुलाई 2015

जालिम

मेरी आशिकी झेली अब नफ़रतें भी झेल...
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बेवफ़ाओ को बेहयाई का दस्तरखान खिला सकता हूँ मैं ।
तेरे दफन की खुशी में सफेद कफन सिला सकता हूँ मैं ।
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हाथों से पिलाने वालीं कभी मेरी आंखों में आके देख,
ऐसे छोटे - मोटे जाम तो सरेआम पिला सकता हूँ मैं ।
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फेसबुक का न मेसेंजर का न व्हाट्स्अप का मोहताज़ हूँ मैं,
तेरे घमंडी दिल को एक हिचकी से हिला सकता हूँ मैं ।
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ये इमारत ए हुश्न फानी है औकात ही क्या इसकी,
15 मिनटों में सारी कारीगरी मिट्टी में मिला सकता हूँ मैं ।
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Rahishpithampuri786@gmail.com

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