रविवार, 24 मई 2015

***बेवफा***

उसे लगता था जुदा होके मैं मर जाऊंगा
ये और बात थी की मुहब्बत को किधर जाऊंगा

ज़माने को थी जलन मेरे रिश्ते से
वो जानता था तेरे साथ मैं निखर जाऊंगा

भटकता रहता हूँ रातों में चाँद तारों के बीच
तुझको भूलूंगा कैसे मैं जो घर जाऊंगा

अब तो ज़िद भी करता है मेरा दर्द-ए-दिल
तेरा अक्स जिधर होगा मैं उधर जाऊंगा

दिन भर एक एक टुकड़ों को समेटता हूँ जाने कैसे कैसे
रात हुई तो फ़राज़ मैं फिर से बिखर जाऊंगा

#सरफ़राज़_अहमद

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