रविवार, 31 मई 2015

रोज़ नयी नज़्म हकीम के साथ

रोज़ नयी नज़्म हकीम के साथ

आज की ये नज़्म बिल्ला गढ़ को मदद नज़र रखर हुए लिखी है।
  31/05/2015
सारी दुनिया के मुस्लिम परेशान है।
सारी दुनिया के मुस्लिम परेशान है।

आज हरियाणा का भी यही हाल है।
सब के सब अपने घर से भी बेहाल है।

कितनी जाने गयी कितने घर है जले,
लूटा उनके घरो का भी सब  माल है।
सारी दुनिया के मुस्लिम परेशान है।
सारी दुनिया के मुस्लिम परेशान है।

कहते हो हम को आतंकवादी सभी,
जबकि देश की सरहदों के निगेहबान है।

कहते है हम को दहशत गर्द यहाँ,
जबकि खुद सब के सब एक हैवान है।

सारी दुनिया के मुस्लिम परेशान है।
सारी दुनिया के मुस्लिम परेशान है।

सियासत के एक तरफ़ा फैसले देखकर,
सियासते गैर मुल्क भी तो हैरान है।
जो है बापू का कतली वो है देश भक्त,
हम तो देश के हो के भी बैईमान है।

सारी दुनिया के मुस्लिम परेशान है।
सारी दुनिया के मुस्लिम परेशान है।
हकीम दानिश

फिरकापरस्ती

फिरकापरस्ती

फिरकापरस्ती

इस शब्द के कई मायने है जिस तरह बस लोग समझ जाये।
लोगों ने तो इसको कई तरह से समझाया है। मगर मेरा मानना है कि जो दो लोगो में या दो समूह में भेदभाव करे उसीको फिरकापरस्त है।
आज कल कई लोग सोशल मीडिया पर वाह वाही लूटने के  चक्कर में इस चीज को बड़ी तेजी से अपना रहे हैं और कुछ बेवकूफ और जाहिल लोग है जो इनका साथ भी दे रहे है।
मैं मुस्लिम हूँ और इस्लाम के वसूलों को मानने वाला भी। जहाँ तक मुझे मालूम और मेरे बुजुर्गो ने बताया है फिरकापरस्ती हराम है। इसका जिक्र क़ुरान शरीफ और हदीस में कई जगह ज़िक्र भी आया है।
आज कल तो लोग दाढ़ी, कपडे, दैनिक जीवन के प्रक्रिये से लोगों को अलग कर रहे है।
अब भला ऐसे लोग दीन का भला करेंगे जो फिरकबाज़ी करके लोगों को बाँट रहे हैं।
लानत है ऐसे लोगों पर और उनके ऐसे सोच पर।
दोस्तों फेसबुक पर ऐसे तमाम लोग है जो अपनी वाह वाही बनाने में ऐसा कर रहे है इनसे दूर रहे और उनके खिलाफ पुख्ता कदम भी उठाएं। ताकि वो ऐसा न कर सके और इंसानियत का भला हो।
ये सिर्फ एक मज़हब की बात नहीं है बल्कि एक इंसानियत की बात है , फिरकापरस्ती करके आप लोगों को बाँट रहे है ये कहाँ की इंसानियत है और किस मज़हब में लिखा है।
ऐसा जो भी लोग कर रहे हैं संभल जाओ। ऐसा करने से आप खुद गुनाह में शामिल हो रहे है।
कड़वी सच्चाई यही है की आज मुसलमानो ने अपनी दोनो किताबो यानि क़ुरान और हदीस को पढ़ना, सुनना लगभग छोड़ दिया है, बस जो भी कर रहे है या तो अपने बड़े बुज़र्गो से सुनकर या सीखकर कर रहे है या मुल्ला मोलवी जो बता रहे है कर रहे है, और वो मुल्ला मोलवी कौन है जो बड़े फक्र से कहते है "हम तो फ्ला इमाम के मानने वाले है" वो नही कहेंगे की "हम मुहम्मद (स. आ. वसललम) को मानने वाले है" इस्लाम को अपनाने वाले के लिये सब से बड़ी हक़ सिर्फ और सिर्फ मुहम्मद (स. आ. वसललम) की होने चाहिये, औरो की कही हुई बातें तो गलत "भी" हो सकती है लेकिन प्यारे नबी के कहे हुए जुमले गलत नही हो सकते।

शुक्रवार, 29 मई 2015

शाहिद प्रतापगढ़ी

फूल कलियो का हो बेपार' बुरा लगता है।
कोई झूठा कहे मक्कार बुरा लगता है।

वो तो दुश्मन है' हर बात ग्वारा है मुझे
भाई भाई में हो तकरार'बुरा लगता है।

शाहीद प्रतापगढ़ी

नात~ऐ~पाक़

नात~ऐ~पाक़

ख्वाहिश है मेरी' मदीने को जाना
खुदा मुझको तू' मदीना दिखाना

दोस्तों की दुआ है'हज़ पे मुझे जाना
खुदा मुझको तू मदीना दिखाना

हरकाम मुझसे तू' मुकम्मल कराना
खुदा मुझको तू' मदीना दिखाना

खाना ऐ काबा का' तवाफ़ करना
खुदा मुझको तू' मदीना दिखाना

आब ऐ ज़मज़म भी थोडा'ज़रूर पीलाना
खुदा मुझको तू' मदीना दिखाना

खुदा मुझको तू' हज़ ज़रूर करना
खुदा मुझको तू' मदीना दिखाना

रोना गिड़गिडाना' उस पाक ज़मी पे
"गुलज़ार"
वसीले से नबी के'गुनाह माफ़ कराना

खुदा मुझको तू' मदीना दिखाना
खुदा मुझको तू' मदीना दिखाना

गुलज़ार राजा अंसारी
09997973503

गुरुवार, 28 मई 2015

इत्तेहाद ऐ अदब : ॥ मजदूर ॥ ------------- बना देते है अक्सर बड़ी बिल्डिग बड़े मकान फिर भी ना मिल पाता इनको रोटी कपड़ा और मकान काम करते है सभी मिल के बाप बेटों का होता जुटान बड़ी मुश्किल से मिल पाता इनको सूखी रोटी कच्चे मकान पसीना बहाते हैं दिनभर ये होता पसीने का अपमान इनके बच्चे को ना मिल पाता अच्छी शिक्षा और अच्छा ज्ञान कब सुधरेगी हालत इनकी कब होगा इसका समाधान कब मिलेगी इनको भी रोटी कब ना होगें ये परेशान कब मिलेगी खुशी इनको कब खुश होगा ये इंसान कब इनके बच्चे पाएँगे अच्छी शिक्षा और अच्छा ज्ञान बना देते हैं अक्सर बड़ी बिल्डिग बड़े मकान -::::::::::अंकित::::::::::::::-

इत्तेहाद ऐ अदब : ॥ मजदूर ॥ ------------- बना देते है अक्सर बड़ी बिल्डिग बड़े मकान फिर भी ना मिल पाता इनको रोटी कपड़ा और मकान काम करते है सभी मिल के बाप बेटों का होता जुटान बड़ी मुश्किल से मिल पाता इनको सूखी रोटी कच्चे मकान पसीना बहाते हैं दिनभर ये होता पसीने का अपमान इनके बच्चे को ना मिल पाता अच्छी शिक्षा और अच्छा ज्ञान कब सुधरेगी हालत इनकी कब होगा इसका समाधान कब मिलेगी इनको भी रोटी कब ना होगें ये परेशान कब मिलेगी खुशी इनको कब खुश होगा ये इंसान कब इनके बच्चे पाएँगे अच्छी शिक्षा और अच्छा ज्ञान बना देते हैं अक्सर बड़ी बिल्डिग बड़े मकान -::::::::::अंकित::::::::::::::-

॥ मजदूर ॥ ------------- बना देते है अक्सर बड़ी बिल्डिग बड़े मकान फिर भी ना मिल पाता इनको रोटी कपड़ा और मकान काम करते है सभी मिल के बाप बेटों का होता जुटान बड़ी मुश्किल से मिल पाता इनको सूखी रोटी कच्चे मकान पसीना बहाते हैं दिनभर ये होता पसीने का अपमान इनके बच्चे को ना मिल पाता अच्छी शिक्षा और अच्छा ज्ञान कब सुधरेगी हालत इनकी कब होगा इसका समाधान कब मिलेगी इनको भी रोटी कब ना होगें ये परेशान कब मिलेगी खुशी इनको कब खुश होगा ये इंसान कब इनके बच्चे पाएँगे अच्छी शिक्षा और अच्छा ज्ञान बना देते हैं अक्सर बड़ी बिल्डिग बड़े मकान -::::::::::अंकित::::::::::::::-

॥   मजदूर   ॥             -------------  बना  देते  है  अक्सर बड़ी बिल्डिग बड़े मकान  फिर भी ना मिल पाता इनको   रोटी कपड़ा और मकान  काम करते है सभी मिल के बाप बेटों का होता जुटान  बड़ी मुश्किल से मिल पाता इनको सूखी रोटी कच्चे मकान  पसीना बहाते हैं दिनभर ये होता पसीने का अपमान  इनके बच्चे को ना मिल पाता अच्छी शिक्षा और अच्छा ज्ञान  कब सुधरेगी हालत इनकी कब होगा इसका समाधान  कब मिलेगी इनको भी रोटी कब ना होगें ये परेशान  कब मिलेगी खुशी इनको कब खुश होगा ये इंसान  कब इनके बच्चे पाएँगे अच्छी शिक्षा और अच्छा ज्ञान     बना देते हैं अक्सर बड़ी बिल्डिग बड़े मकान    -::::::::::अंकित::::::::::::::-

बुधवार, 27 मई 2015

आज की ताज़ा नज़्म

!!  आज की ताज़ा ताज़ा नज़्म !!
          27/05/2015
सियासत में दलालो ने कदम डाल रखा है !!
स्विस बैंको में अपना काला माल रखा है !!

औरो से तो खूब कहते है घर वापसी करो !!
अपने ही घरो में मुल्लो को पाल रखा है !!

उन्हें तो घूमने से फुरसत ही नहीं !!
ढूंढ़ो कहा विकास जैसा लाल रखा है !!

उन्हें तो लग गयी है विदेशो की हवा !!
पूछने को कहा हाल चाल रखा है !!

कितने मर गए कितने और बाकी है !!
गरीब के दिल पे बस मलाल रखा है !!

जो चाहते है तोड़ना इस देश को हकीम !!
देखो उन की आँख में सूअर का बाल रखा है !!

!! शायर~हकीम दानिश !!

मंगलवार, 26 मई 2015

रोज़ रक शेयर आज अंकित कुमार

रोज़ रक शेयर आज अंकित कुमार
इत्तेहाद ऐ अदब : 24/5/2015 
को योगदा सत्संग महाविद्यालय राॅची के परिसर मे 3 घंटे बिताया तो प्रकृति की कुछ सुन्दरता नजर आई जिसे कविता के माध्यम से आपके सामने रख रहा हूॅ।
 बैठा था हरे मैदान मे अंजाने वृक्ष के छाॅव मे 
इक अजीब सा सन्नाटा था 
बीच बीच मे कू- कू की 
आवाज का आना था 
जानवर चिड़ियो का ठिकाना था 
बड़ी दूर मे मकानों का नजराना था
 यूॅ शान्त से खड़े थे वृक्ष सभी 
जैसे इक दूजे से अंजाना था
 कभी हल्की हवा चलती तो झूम जाते थे वृक्ष के पत्ते
 शायद अपनी उपस्थिति का आभास कराना था 
इक अजीब सी शान्ति मिल रही थी वृक्ष की छाॅव मे
कितना सुन्दर मनोरम प्रकृति का तराना था 
हरे -हरे घास पे पीले फूलो का मिल जाना था 
कितना सुन्दर मनोरम प्रकृति का नजारा था -
:::::::अंकित::::: mob 8541058067::-

24/5/2015 को योगदा सत्संग महाविद्यालय राॅची के परिसर मे 3 घंटे बिताया तो प्रकृति की कुछ सुन्दरता नजर आई जिसे कविता के माध्यम से आपके सामने रख रहा हूॅ। बैठा था हरे मैदान मे अंजाने वृक्ष के छाॅव मे इक अजीब सा सन्नाटा था बीच बीच मे कू- कू की आवाज का आना था जानवर चिड़ियो का ठिकाना था बड़ी दूर मे मकानों का नजराना था यूॅ शान्त से खड़े थे वृक्ष सभी जैसे इक दूजे से अंजाना था कभी हल्की हवा चलती तो झूम जाते थे वृक्ष के पत्ते शायद अपनी उपस्थिति का आभास कराना था इक अजीब सी शान्ति मिल रही थी वृक्ष की छाॅव मे कितना सुन्दर मनोरम प्रकृति का तराना था हरे -हरे घास पे पीले फूलो का मिल जाना था कितना सुन्दर मनोरम प्रकृति का नजारा था -:::::::अंकित::::: mob 8541058067::-

24/5/2015 को योगदा सत्संग महाविद्यालय राॅची के परिसर मे 3 घंटे बिताया तो प्रकृति की कुछ सुन्दरता नजर आई जिसे कविता के माध्यम से आपके सामने रख रहा हूॅ।     बैठा था हरे मैदान मे   अंजाने वृक्ष के छाॅव मे  इक अजीब सा सन्नाटा था बीच बीच मे कू- कू की आवाज का आना था  जानवर चिड़ियो का ठिकाना था  बड़ी दूर मे मकानों का नजराना था  यूॅ शान्त से खड़े थे वृक्ष सभी जैसे इक दूजे से अंजाना था  कभी हल्की हवा चलती तो झूम जाते थे वृक्ष के पत्ते  शायद अपनी उपस्थिति का    आभास कराना था  इक अजीब सी शान्ति मिल रही थी वृक्ष की छाॅव मे  कितना सुन्दर मनोरम प्रकृति का तराना था  हरे -हरे घास पे पीले फूलो का मिल जाना था  कितना सुन्दर मनोरम प्रकृति का नजारा था    -:::::::अंकित::::: mob 8541058067::-

24/5/2015 को योगदा सत्संग महाविद्यालय राॅची के परिसर मे 3 घंटे बिताया तो प्रकृति की कुछ सुन्दरता नजर आई जिसे कविता के माध्यम से आपके सामने रख रहा हूॅ। बैठा था हरे मैदान मे अंजाने वृक्ष के छाॅव मे इक अजीब सा सन्नाटा था बीच बीच मे कू- कू की आवाज का आना था जानवर चिड़ियो का ठिकाना था बड़ी दूर मे मकानों का नजराना था यूॅ शान्त से खड़े थे वृक्ष सभी जैसे इक दूजे से अंजाना था कभी हल्की हवा चलती तो झूम जाते थे वृक्ष के पत्ते शायद अपनी उपस्थिति का आभास कराना था इक अजीब सी शान्ति मिल रही थी वृक्ष की छाॅव मे कितना सुन्दर मनोरम प्रकृति का तराना था हरे -हरे घास पे पीले फूलो का मिल जाना था कितना सुन्दर मनोरम प्रकृति का नजारा था -:::::::अंकित::::: mob 8541058067::-

24/5/2015 को योगदा सत्संग महाविद्यालय राॅची के परिसर मे 3 घंटे बिताया तो प्रकृति की कुछ सुन्दरता नजर आई जिसे कविता के माध्यम से आपके सामने रख रहा हूॅ।     बैठा था हरे मैदान मे   अंजाने वृक्ष के छाॅव मे  इक अजीब सा सन्नाटा था बीच बीच मे कू- कू की आवाज का आना था  जानवर चिड़ियो का ठिकाना था  बड़ी दूर मे मकानों का नजराना था  यूॅ शान्त से खड़े थे वृक्ष सभी जैसे इक दूजे से अंजाना था  कभी हल्की हवा चलती तो झूम जाते थे वृक्ष के पत्ते  शायद अपनी उपस्थिति का    आभास कराना था  इक अजीब सी शान्ति मिल रही थी वृक्ष की छाॅव मे  कितना सुन्दर मनोरम प्रकृति का तराना था  हरे -हरे घास पे पीले फूलो का मिल जाना था  कितना सुन्दर मनोरम प्रकृति का नजारा था    -:::::::अंकित::::: mob 8541058067::-

***खुली किताब***

मेरे दुश्मन जो ना समझ पाएं हूँ ऐसी पहेली फ़राज़

मेरे अपनों के लिए एक खुली किताब हूँ मैं

#सरफ़राज़_अहमद

*ग़ज़ल *

************ग़ज़ल*************
ज़िन्दगी में मेरी वो ना आती तो अच्छा था।
नगमे प्यार के ना सुनाती तो अच्छा था।

बड़ी शान से जीता था' अब टुटा हूँ बहुत
गुलाब है वो' कांटो में ही रहती तो अच्छा था।

सो रहा था मैं' बड़े सुकून के साथ
खयालो में मेरे वो ना आती' तो अच्छा था

उसके दिए ज़ख्म रख लेता' तोहफ़ा समझके
यूँ सरे आम मुझको ना रुलाती' तो अच्छा था।

करती बेवफ़ाई मेरे साथ वो ख़ुशी से' मग़र
गुलज़ार को राजा ना बनाती तो अच्छा था

राईटर~गुलज़ार राजा अंसारी
09997973503

बहन की शादी और दुरी का गम

बहन की शादी और दुरी का गम

आज मेरे सबसे अज़ीज़ दोस्त की बहन की शादी थी तो कुछ अशआर लिखे
और वो दोस्त कुवैत में था में सऊदी में  दोनों के हाल यही थे जो अपनी शायरी में बया किये है। दोनों भाई imo पे वीडियो कॉल करके रात भर रोये।
      24/05/2015

बहन की डोली उठी में बड़ा मजबूर था,
कर भी क्या सकता था घर से जो इतना दूर था।
या खुदा ये कोनसे गुनाह की सजा मिली,
में तो नादान था बिलकुल बे कसूर था।

रोया था बहुत आँखे अभी भी नम है,
अम्मी को भी मेरी कमी का गम है।
देखा जो हर तरफ को मेहमाँ ने मेरे घर में,
सबकी ज़ुबा पे ये था कहा हम है कहा हम है।

या खुदा ज़िन्दगी किस मोड़ पे आई है,
वहा भीड़ है और यहाँ तन्हाई है।
के जिसके साथ बिताई थी हँसते खेलते ज़िन्दगी
में कितना दूर हु और आज उसकी विदाई है

रोज़ नयी गज़ले नदीम सिद्दीक़ी के साथ

सिर्फ़ आने का  गुमाँ होता है !
उनका दीदार  कहाँ होता है ! !

ये बता दो ऐ हवाओं मुझको !
क्या मेरा ज़िक्र वहाँ होता है ! !

है मोहब्बत का ग़म अजीबो ग़रीब !
शक्ल से ही जो  अयाँ होता है ! !

ऐ मेरे दोस्त  मेरी ग़ज़लों मे  !
हाल दिल का ही बयाँ होता है ! !

रात दिन हम तड़प रहे हैं " नदीम " !
क्या कहें दर्द  कहाँ होता है ! !

- - - - नदीम सिद्दीक़ी - - - -

हकीम दानिश की ताज़ा ताज़ा नज़्मे

आज की ताज़ा ताज़ा नज़्म पेशे खिदमत है
          25/05/2015

अपनी तारीफों से जेब भरना नहीं है !!
दुःख हो जिससे किसी को वो काम करना नहीं है!!

जुर्म के खिलाफ में तो बोलता रहूँगा !!
अब किसी शख्श से मुझको डरना नहीं है !!

बस बहुत हो गए टुकड़े रिश्तों के अब तो !!
अब किसी अपने से मुझको लड़ना नहीं है !!

मेंरा साथ है सब दोस्तों के लिए !!
अब किसी बात से मुझको मुकरना नहीं है !!

बस बहुत हो गया मज़लूमो पे ज़ुल्म हकीम !!
अब तुम हारी जेलो में सड़ना नहीं है !!

अब अगर कुछ हुआ तो सीधा जिहाद करेंगे !!
बालटे आंसुओ से अब तो भरना नहीं है !!

बहुत क़त्ल मासूमो के तुमने किये है !!
अब सज़ा के बिना ज़ख्म भरना नहीं है !!

के जिन रास्तो पे भटक में भी जाऊ !!
हा उन रास्तो से गुज़ारना नहीं है !!

वो बुज़दिल है कायर है डरपोक है
जिसको इस्लाम के नाम पे मरना नहीं है !!

शायर ~हकीम दानिश मोबाईल नंबर +919997868744

हकीम दानिश की ताज़ा ताज़ा नज़्मे

आज की ताज़ा ताज़ा नज़्म पेशे खिदमत है
          25/05/2015

अपनी तारीफों से जेब भरना नहीं है !!
दुःख हो जिससे किसी को वो काम करना नहीं है!!

जुर्म के खिलाफ में तो बोलता रहूँगा !!
अब किसी शख्श से मुझको डरना नहीं है !!

बस बहुत हो गए टुकड़े रिश्तों के अब तो !!
अब किसी अपने से मुझको लड़ना नहीं है !!

मेंरा साथ है सब दोस्तों के लिए !!
अब किसी बात से मुझको मुकरना नहीं है !!

बस बहुत हो गया मज़लूमो पे ज़ुल्म हकीम !!
अब तुम हारी जेलो में सड़ना नहीं है !!

अब अगर कुछ हुआ तो सीधा जिहाद करेंगे !!
बालटे आंसुओ से अब तो भरना नहीं है !!

बहुत क़त्ल मासूमो के तुमने किये है !!
अब सज़ा के बिना ज़ख्म भरना नहीं है !!

के जिन रास्तो पे भटक में भी जाऊ !!
हा उन रास्तो से गुज़ारना नहीं है !!

वो बुज़दिल है कायर है डरपोक है
जिसको इस्लाम के नाम पे मरना नहीं है !!

शायर ~हकीम दानिश मोबाईल नंबर +919997868744

सोमवार, 25 मई 2015

तेरे नाम गज़ब गुमनाम ☆★

तेरे नाम गज़ब गुमनाम ☆★

मेरी तमन्ना, मेरा प्यार, मेरा कारोबार,
लगा है मौत का बाजार उसकी निगाहों में ।

फिजा का रंग और चांद सितारो की
चमक है उस की पनाहों में ।

शराफ़त की हद हुई इशारा वो जरा समझें,
तौड कर सारी रस्में भरूंगा उसको बाहों में ।

जो उनके तबस्सुम के दीदार मे बेमौत मर मिटे,
ऐ नसीम मैं भी शामिल हूँ उन्हीं बेगुनाहों में ।

जिंदा तो ठीक ही ठीक मुर्दे भी मचल उठे,
जब पायल उसकी सुनाई देती है शमशानगाहों में ।

Rahishpithampuri786@gmail.com

*मोहब्बत में बर्बाद*

बरसात में इक गुलाब
पड़ा देखा तो लगा यूँ
******गुलज़ार****
हमारी तरह मोहब्बत में
हुए बर्बाद और भी है।।

राईटर~गुलज़ार राजा अंसारी
09997973503

हाँ ये सच है जीने का कोई अरमान नहीं अब
तुझसे बिछड़ कर दिल का कोई मेहमान नहीं अब

मेरी ज़िन्दगी भी अब मुझसे पनाह मांगती है
तनहा दिल पे फ़राज़ कोई मेहरबान नहीं अब

तेरा साथ था तो जानती थी सारी दुनियां मुझको
तुझसे होके जुदा किसी से जान पहचान नहीं अब

बैठा कर मेरे यार पास बहलाते हैं मुझे
हूँ मैं भी समझदार कोई नादान नहीं अब

#सरफ़राज़_अहमद

रविवार, 24 मई 2015

***बेवफा***

उसे लगता था जुदा होके मैं मर जाऊंगा
ये और बात थी की मुहब्बत को किधर जाऊंगा

ज़माने को थी जलन मेरे रिश्ते से
वो जानता था तेरे साथ मैं निखर जाऊंगा

भटकता रहता हूँ रातों में चाँद तारों के बीच
तुझको भूलूंगा कैसे मैं जो घर जाऊंगा

अब तो ज़िद भी करता है मेरा दर्द-ए-दिल
तेरा अक्स जिधर होगा मैं उधर जाऊंगा

दिन भर एक एक टुकड़ों को समेटता हूँ जाने कैसे कैसे
रात हुई तो फ़राज़ मैं फिर से बिखर जाऊंगा

#सरफ़राज़_अहमद

शनिवार, 23 मई 2015

****मोदी तुमपे एक लफ्ज़****

****मोदी तुमपे एक लफ्ज़****


गर करना है नाम तुमसा तो बदनाम हम भले
मोदी तेरे काम से बेकाम हम भले

देख हर शख्स कर रहा है तेरी गलतियों को उजागर
तेरी जान पहचान से अनजान हम भले

तेरे मज़हब ने गर सिखाया है तुझको लड़ना झगड़ना
बा खुदा सिख हिन्दू ईसाई से मुसलमान हम भले

#सरफ़राज़_अहमद

***मेरी सोच***

हो गर शाम का मंज़र घर जाएँ तो अच्छा है
दर्द जब हद से गुज़रे आँख भर जाएँ तो अच्छा है

कभी गर हो ज़िन्दगी में अपनों से लड़ाई
उस मौके पे फ़राज़ हम हार जाएँ तो अच्छा है

मुहब्बत में लोगों को बस रोते ही देखा है
बिना इश्क़ के ज़िन्दगी गुज़र जाए तो अच्छा है

जो दिखे ख्वाब में होते हुए अपनों से जुदाई
या खुदा वह ख्वाब बिखर जाएँ तो अच्छा है

चाहें भले लग जाये कई अरसे गुज़रने में
हो राहें मंज़िल की जिस तरफ उधर जाएँ तो अच्छा है

*माँ*

मुझको गोदी में ले लो' फिर से माँ
होगी ना फिर कोई' खता फिर  से माँ

पास थी मेरे'तो अहमियत न हुई मालूम
बिन तेरे ज़िन्दगी में' तन्हा बहुत हूँ माँ

झूठा है ये ज़माना' मुझे अच्छा नही लगता
तेरे जैसा माँ' मुझे कोई सच्चा नही लगता

कहती थी अक्सर' मान जा मुझे सताने से
आउंगी ना कभी पास तेरे'रोने और मनाने से

दर्द अपना अब मैं' सुनाऊँ जाके किसको
चली गई रूठके जब तुम ही' मुझसे माँ

लिख लिखके आ गए आंसू तेरे गुलज़ार के
अब तो आ जाओ तुम' इक बार' फिर से माँ

गुलज़ार राजा अंसारी

09997973503

*मेंहदी*

मेहँदी तेरे हाथ की' अगर मैं हो गया होता
दिल में न सही' हाथो पे तेरे चढ़ गया होता

धो देती बड़े प्यार से जब तू'पानी से मुझको
बनके लाल रंग'हाथो पे तेरे उतार गया होता

गुलज़ार राजा

09997973503

शुक्रवार, 22 मई 2015

*डर लगता है*

अब तो हिन्दू मुसलमान से डर लगता है
इंसान को इंसान से डर लगता है

शैतान तो कर रहे हैं आराम अब
ये मज़हब नाम के हैवान से डर लगता है

दिन रात यही सोच में गुज़रती है ज़िन्दगी
इस दुनियां के सुबह-व-शाम से डर लगता है

ना जाने कौन सी गोली बम के हो जाएँ निशाना
दोस्त पड़ोस भाई हर नाम से डर लगता है

शायद ही कभी होगा अमन अब इस दुनियां में फ़राज़
आने वाले ज़िन्दगी के हर मुकाम से डर लगता है

बुधवार, 20 मई 2015

मोदी के कमीनापन

हमें उम्मीद थी वो आग़ नफरत की बुझा देगा, नहीं मालूम था इतना कि मोदी आकर हवा देगा. पिलाओगे अगर मुसलमानों को हमेशा ज़हर मज़हब का, वो दीवाना सरवर किसी दिन देखना दुनिया जला देगा .

एक सवाल मोदी से

एक सवाल मोदी से

शर्मिंदगी के रहबर पर "टोपी,, से परहेज़ ।
भारत के आतंकी कुत्ते चाय वाले अंग्रेज़ ।
बेशर्म विदेशों में जो तु जीजाओ पर लुटा रहा,
वो दामोदर की धरोहर है या जशोदाबेन का दहेज़ ।

Rahishpithampuri786Gmail.com

*इश्क़*

रहती है हर वक़्त हर रोज़ बस उसकी ही तलाश

वो शख्स एक रोज़ एक नज़र में दीवाना बना गया

*ज़िन्दगी गुल ऐ गुलज़ार क्या करूँ*

*ग़ज़ल*

उठ उठकर किसी का अब'इंतज़ार क्या करूँ
किसी के लिए दिल अपना' बेक़रार क्या करूँ

चराग़ लेकर भी अब दिखती नही' वफ़ा लोगो में
चोट खाया हूँ बहुत'किसी पे अब ऐतबार क्या करूँ

तौहीन है मोहब्बत की नाम लूँ तेरा' महफ़िल में
नाम लेकर तेरा अब मैं' तुझे सरे बाज़ार क्या करूँ

हो गया हूँ परेशान बहुत इस बेवफा दुनिया से
किनारे हूँ समन्दर के'लहरो का इंतज़ार क्या करूँ

करता हूँ मोहब्बत फ़कत तुझसे' ऐ जाए बहार
तू बता ज़िन्दगी अपनी' गुल ऐ गुलज़ार क्या करूँ।

राईटर~गुलज़ार राजा

मंगलवार, 19 मई 2015

इश्क की आबरू हमने बचा लिया अक्सर


इश्क की आबरू हमने बचा लिया अक्सर
चिरागे-दिल से मुकद्दर जला लिया अक्सर
कौन चाहेगा कि खुद मौत को पीते जाएँ
दर्द ने सबको शराबी बना दिया अक्सर
वफा का आईना जब तेरी नजर से गुजरा
तूने अपना ये चेहरा छुपा लिया अक्सर
करीब रहते हैं जो रातभर इस कलेजे में
चाँद वो दिन में हमने बुझा दिया अक्सर
फूल जितने भी मायूस होके टूट चुके थे
उनसे ही अपना गुलशन सजा लिया अक्सर
गुनाह पूरी तसल्ली से किया करता हूँ
तेरा खंजर सीने पे चला लिया अक्सर

मोहम्मद सरवर अली खान
मोबाइल नम्बर = +918521491859

वक़्त नहीं

वक़्त नहीं

हर ख़ुशी है लोंगों के दामन में ,
पर एक हंसी के लिये वक़्त नहीं .
दिन रात दौड़ती दुनिया में ,
ज़िन्दगी के लिये ही वक़्त नहीं .

सारे रिश्तों को तो हम मार चुके,
अब उन्हें दफ़नाने का भी वक़्त नहीं ..

सारे नाम मोबाइल में हैं ,
पर दोस्ती के लिये वक़्त नहीं .
गैरों की क्या बात करें ,
जब अपनों के लिये ही वक़्त नहीं .

आखों में है नींद भरी ,
पर सोने का वक़्त नहीं .
दिल है ग़मो से भरा हुआ ,
पर रोने का भी वक़्त नहीं .

पैसों की दौड़ में ऐसे दौड़े,
कि थकने का भी वक़्त नहीं .
पराये एहसानों की क्या कद्र करें ,
जब अपने सपनों के लिये ही वक़्त नहीं

तू ही बता ऐ ज़िन्दगी ,
इस ज़िन्दगी का क्या होगा,
कि हर पल मरने वालों को ,
जीने के लिये भी वक़्त नहीं.

बेटियां गगर की रौनक

बेटियां गगर की रौनक
ना राह चलते रिशतो कोनिलाम करती है बेटिया  ना
 वालिद के इजजत को सरेआम करती है बेटिया
मुशकिल घडियो मे हर पल साथ निभाती है बेटिया
 पकत माॅ बाप की जान होतीहै बेटिया
बुढापे मे अकसर झुॅझलाते है बेट मगर
उनहे पयार से सजाती है बेटिया
दुःखी होने पर भी हर पल
वालिद को देख मुसकुराती है बेटिया
 इक नही दो-दो वालिदो कोसंभालती है बेटिया
 सास-ससुर पे भी जानलुटाती है बेटिया
 शायद इसलिए हर रिशते मे उचच पायदान पाती है
 बेटियाॅ :::::::अंकित::::::::::

Betiyan

Betiyan
ना राह चलते रिशतो कोनिलाम करती है बेटिया ना वालिद के इजजत को सरेआम करती है बेटिया मुशकिल घडियो मे हर पल साथ निभाती है बेटिया पकत माॅ बाप की जान होतीहै बेटिया बुढापे मे अकसर झुॅझलाते है बेट मगर उनहे पयार से सजाती है बेटिया ॅ दुःखी होने पर भी हर पल वालिद को देख मुसकुराती है बेटिया ॅ इक नही दो-दो वालिदो कोसंभालती है बेटिया ॅ सास-ससुर पे भी जानलुटाती है बेटिया शायद इसलिए हर रिशते मे उचच पायदान पाती है बेटियाॅ :::::::अंकित::::::::::

ना राह चलते रिशतो कोनिलाम करती है बेटिया ना वालिद के इजजत को सरेआम करती है बेटिया मुशकिल घडियो मे हर पल साथ निभाती है बेटिया पकत माॅ बाप की जान होतीहै बेटिया बुढापे मे अकसर झुॅझलाते है बेट मगर उनहे पयार से सजाती है बेटिया ॅ दुःखी होने पर भी हर पल वालिद को देख मुसकुराती है बेटिया ॅ इक नही दो-दो वालिदो कोसंभालती है बेटिया ॅ सास-ससुर पे भी जानलुटाती है बेटिया शायद इसलिए हर रिशते मे उचच पायदान पाती है बेटियाॅ :::::::अंकित:::::::::mobile no 0854158067:

ना राह चलते रिशतो कोनिलाम करती है बेटिया  ना वालिद के इजजत को सरेआम करती है बेटिया  मुशकिल घडियो मे हर पल साथ निभाती है बेटिया  पकत माॅ बाप की जान होतीहै बेटिया  बुढापे मे अकसर झुॅझलाते है बेट मगर उनहे पयार से सजाती है बेटिया ॅ दुःखी होने पर भी हर पल वालिद को देख मुसकुराती है बेटिया ॅ इक नही दो-दो वालिदो कोसंभालती है बेटिया ॅ सास-ससुर पे भी जानलुटाती है बेटिया  शायद इसलिए हर रिशते मे उचच पायदान पाती है बेटियाॅ :::::::अंकित:::::::::mobile no 0854158067:

***sirf tum***

ऐसा लगता है तेरे बाद कोई दुनियां ही नहीं

ऐसा लगता बिछड़ गया तो मर जाऊंगा मैं

तेरे लिये एक ख़त लिख रहा हूँ

तेरे लिये एक ख़त लिख रहा हूँ
वक़्त ऐ शब है ग़ज़ल लिख रहा हूँ
अपनी चाहत पे मैं कुछ हर्फ़ लिख रहा हूँ
तनहा हूँ तन्हाई के आलम में बैठा
न जाने मैं क्यों और क्या लिख रहा हूँ
एक फूल अच्छा लगता है मुझको
मैं उस के लिये ये सब लिख रहा हूँ
सारे ज़माने को तो मुझसे उल्फत नहीं
सिर्फ एक शख्स के लिये लिख रहा हूँ
हिज्र की तल्खी से तंग आकर मैं
सनम के नाम एक ख़त लिख रहा हूँ
वो मुझको चाहे या न चाहे
मैं तो सिर्फ अपना दर्द लिख रहा हूँ
शायद उस तक मेरी बात पहुँचे
इस उम्मीद में मैं ये ग़ज़ल लिख रहा हूँ ।

"सलमान सिद्दीकी"

***इक रोज इश्क हटा दोगे सीने से,***

इश्क हटा दोगे सीने से, आखिर क्या रह जाएगा
तब तो तेरा जिस्म सलोना, बुत जैसा रह जाएगा

इस मुरादों की दुनिया में, मेरी चाहत कुछ भी नहीं
तू मुझे जो मिल न सकी, बस ये गम रह जाएगा

मेरी मानो तो धरती पर दो ही चीजें अपनी हैं
दिल का दर्द औ खारा आंसू, आखिर में रह जाएगा

सरवर  से नाता है पुराना, सहर से कभी मिल न सके
दिन में दिल तो सो लेगा, रात में तन्हा रह जाएगा 

मोबाइल नम्बर = +918521491859

रोज़ एक शायर आज नदीम सिद्दीक़ी

हर शख़्स इस जहान में हैरान सा क्यों है ! 
इंसान जो कल तक था वो हैवान सा क्यों है ! !

वीरानी सी हर एक तरफ़ छाई हुई है ! 
क्या हो गया इस शहर को वीरान सा क्यों है ! !

हर लम्हा यही सोच , यही फ़िक्र , यही ग़म ! 
इंसान की जाँ लेना भी आसान सा क्यों है ! !

हर सिम्त अँधेरा है हर इक रात है काली ! 
इस दौर में हर रास्ता सुनसान सा क्यों है ! !

सहमा सा हर इन्साँ है " नदीम " आज के युग में ! 
लाशों की तरह आदमी बेजान सा क्यों है ! !

नदीम सिद्दिक़ी

रोज़ एक शायर आज नदीम सिद्दीक़ी

आ जाओ दिल उदास है वीराँ है ज़िन्दगी ! 
आलम ये है के मौत का उनवाँ है ज़िन्दगी ! !

दिल की शिकस्तगी की शिकायत भी क्या करें ! 
ख़ुद अपने इन्तिख़ाब पे हैराँ है ज़िन्दगी ! !

इक बावफ़ा का साथ हो जिसके नसीब में ! 
उसके लिए बहार ब- दामाँ है ज़िन्दगी ! !

बदले हुए निज़ाम का आलम ही और है ! 
अब पूछिये न कितनी परेशाँ है ज़िन्दगी ! !

ऐ रहबराने मुल्क मुझे तुम ही कुछ बताओ ! 
क्यों अम्न की फ़ज़ा से गुरेज़ाँ है ज़िन्दगी ! !

अब आशियाँ किसी का जलाया न जाएगा ! 
दिल साफ़ है तो दर्द का दरमाँ है ज़िन्दगी ! !

एक एक ज़ख़्म तोहफ़ा है उनका ही ऐ " नदीम " ! 
उनके करम से रश्के - गुलिस्ताँ है ज़िन्दगी ! !

- - - - - नदीम सिद्दीक़ी - - - - -

रोज़ एक शायर आज नदीम सिद्दीक़ी

टूटे हुए सब अहदे वफ़ा  याद आएँगे !
चेहरा जो आईने मे कभी देखिएगा आप !
नदीम सिद्दीकी

आज का दौरे हाज़िर

भुत जिन्नात न हैवान से डर लगता है,

अब इंसान को इंसान से डर लगता है।

पहेले कहेते थे शैतान से डर लगता है,

अब मुसलमान को मुसलमान से डर लगता है।

खान जी मोहम्मद हारिथ

रात की नींद

ना नींद है आँखों में और आँखे भी नम है,

न जाने क्या बात है किस बात का गम है।

सोचा के दवा खाऊ फिर याद मुझ को आया
,
यादो में जितना दम है उतना गोली में कहा दम है।

हकीम दानिश

सोमवार, 18 मई 2015

देखा है ☆★

आंगन मै सुरज गलियों में चांद उतरते देखा है ।
खिडकियों पर हुश्न संग जुल्फें संवरते देखा है ।

इंतजार में हूँ कब छत से नाजुक हथेली की "पुकार,, लगे,
आज फिर छत पर सोने के लिए उसे निकलते देखा है ।

दवाओ से नही 'दुवाओ, से इश्क संभलते देखा है ।
मेरे नहीं तेरे सिने में सही प्यार का दरिया उबलते देखा है ।

लोग कहते हैं की वक्त बदलता है हर शख्स का,
हमने तो वक्त के साथ लोगों को बदलते देखा है ।

Rahishpithampuri786@gmail.com

तहरीक ऐ इंसानसाज़ी

चलो एक तहरीक चलाया जाये ।
इंसान को इंसान बनाया जाये ।

फूलों को न यूँ तोड़ा जाये ।
किरदार से जहाँ को महकाया जाये ।

भूखे को खाना खिलाया जाये ।
प्यासे को पानी पिलाया जाये 

दिल न किसी का दुखाया जाये ।
रोते को फ़क़त हँसाया जाये ।

ज़ालिम की मज़म्मत की जाये ।
मज़लूम की हिमायत की जाये ।

फ़र्ज़ है यही इंसान का "सलमान" ।
यही सभी को समझाया जाये ।

चलो एक तहरीक चलाया जाये ।
इंसान को इंसान बनाया जाये ।

"सलमान सिद्दीकी"

*मोहब्बत बचा के रखना*

*ग़ज़ल*

दिल की बात दिल में 'छुपा के रखना
मोहब्बत को ज़माने से'बचाके रखना

चराग मोहब्बत के जलाओ ख़ुशी से
आँधियों से इनको' बचाके रखना

मिल जाए गर मोहब्बत में'ज़ख्म तुम्हे
ज़ख्मो को ज़माने से' बचा के रखना

फूल ऐ गुलाब तोड़ना ख़ुशी से तुम
हाथो को कांटो से' बचाके रखना

देखनी है खामियां दुसरो में तुम्हे'तो
पास अपने भी तुम' आईना रखना

इश्क ऐ मोहब्बत में कंगाल मत होना
*गुलज़ार*
वालीदेन के लिए'मोहब्बत' बचाके रखना

राईटर~गुलज़ार राजा
09997973503

रिश्तो की अहमियत

आज की मॉडर्न बदलती परिवेश में  लोगो ने रिश्तो इक अहमियत को भी बदल डाला है . अहमियत यह एक एहसास है किसी का किसी के प्रति, समझ समझ की बात है| बदलते परिवेश में रिश्तो की परिभाषा जरूर बदली है, पर रिश्तों की अहमियत आज भी पहले जितनी नही है। हर स्थिति में अपने हर रिश्ते को सदाबहार रखने का एक ही मंत्र है- हर रिश्ते को समुचित आदर देना। रिश्ता चीन के उस उत्पाद की तरह हो गया है सस्ता तो है पर कितना टिकाऊ है या नहीं इसका पता नहीं |
वर्तमान समय में रिश्तो की अहमियत इतनी बदल चुकी है कि कोई भी व्यक्ति, चाहे अपनी व्यस्तता के कारण हो या अपनी निजी स्वार्थवश रिश्तो को निभाने के बजाए उसे ढो रहे हैं |
अगर अपनी पुरातन सभ्यता कि ओर देखें तो रिश्तों कि अपनी बहुत अहमियत होती थी, सिर्फ़ वास्तविक रिश्ते ही नही बल्कि अपने गाँव या शहर में भी अपने आप ही रिश्ते बनते थे जिसे लोग ऊँच - नीच के भेदभाव के बगैर निभाते थे |
 रिश्ते भी कई तरह के होते है माँ बाप, भाई बहिन, पति पत्नी, पोता पोती और बहुत से ऐसे रिश्ते जिसे हम आज के दौर में उसके साथ या उसे लेकर चल रहे है| हम लोग बहुत से ऐसे रिश्तो को भी देखते है जो इन रिश्तो से भी बहुत मजबूत है और हर रिश्ते को ताकत प्रदान करते  है| इंसानियत के रिश्तों को कोई योग्यता और किसी समय कि जरुरत नहीं होती यह तो सिर्फ अपने बुद्धि के स्तर पर रखा जाता है कि आप और हम वाकई में यही( इंसान) है या कोई और, जो इंसान को भी नहीं महत्व दे रहा है आज के इस दौर में?

रिश्ते बनाना तो आसान है मगर निभाना मुश्किल है| इसलिए रिश्तो की अहमियत को समझे, अपने इन मीठे रिश्तो के लिए भी वक़्त निकले और अपनों के साथ भी वक़्त बिताएं|अपनों के साथ बिताये वक़्त जो ख़ुशी आपको देगी वो आपको दुनिया में कही न मिलेगा|  आज के इस बदलते परिवेश ने रिश्तो ने की तो मतलब ही बदल डाला है आज कल लोग तो रिश्तो को सिर्फ सोशल मीडिया से ही निभा रहे है| मगर दोस्तों अब भी वक़्तहै संभल जाओ कहीं ऐसा न हो कही ये रिश्तो की डोर छुट न जाये |

कई लोग तो रिश्तो को आजमाना शरू कर दिए हैं | देखूं मेरा भाई या मेरा दोस्त प्यार करता है या नहीं|  उसको कई तरह से आजमाते है मगर तब भी आपकी वो हर इम्तेहान पास होता है तो आप ये कहके टाल देते है मैं तो बस यूँ ही देख रहा था| ये भी कोई बात हुई| क्या रिश्ते अब विश्वास के डोर पे नहीं बनते, क्या हमारे रिश्तो में अब यही सब  रह गया है|

दोस्तों रिश्तो की अहमियत को समझे चाहे वो कोई भी रिश्ता हो, उसकी डोर को इतनी मजबूत कर दे कि कोई तोड़ न सके

 अपनों के संग महकती है ये रिश्तों की दुनिया निराली
हर पल बढती है ये दुनिया निराली
रिश्तों की होती है ये अनमोल कहानी
अपनों का अपनापन है इसकी निशानी
कांच से भी नाजुक होती है ये रिश्तो की दुनिया
जरा सी भूल से बिखर जाती है ये रिश्तों की दुनिया
हमारी ज़िन्दगी में बहुत अहमियत रखती है रिश्तों की दुनिया