शनिवार, 16 मई 2015

*ग़ज़ल*

ये जो आफत में जान है भईये
क्या तेरा इम्तेहान है भईये

अपने किरदार को ऊँचा कर
जैसे तेरा मकां है भईये

ताक मत दूसरे की बेटी को
तेरी बेटी भी जवां है भईये

क्या पता जाने कब पलट जाए
आदमी की जुबां है भईये

इसमें पत्थर कहाँ पे रखु मैं
आइने की दुकान है भईये

जो भी लाशो पर चलकर जाता है
वही नेता महान है भईये

खैरयत है इसी में चुप हो जा
वरना मुँह में ज़बान है भईये

शायर~अकरम नागिनवी

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