सोमवार, 18 मई 2015

देखा है ☆★

आंगन मै सुरज गलियों में चांद उतरते देखा है ।
खिडकियों पर हुश्न संग जुल्फें संवरते देखा है ।

इंतजार में हूँ कब छत से नाजुक हथेली की "पुकार,, लगे,
आज फिर छत पर सोने के लिए उसे निकलते देखा है ।

दवाओ से नही 'दुवाओ, से इश्क संभलते देखा है ।
मेरे नहीं तेरे सिने में सही प्यार का दरिया उबलते देखा है ।

लोग कहते हैं की वक्त बदलता है हर शख्स का,
हमने तो वक्त के साथ लोगों को बदलते देखा है ।

Rahishpithampuri786@gmail.com

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