तेरे लिये एक ख़त लिख रहा हूँ
वक़्त ऐ शब है ग़ज़ल लिख रहा हूँ
अपनी चाहत पे मैं कुछ हर्फ़ लिख रहा हूँ
तनहा हूँ तन्हाई के आलम में बैठा
न जाने मैं क्यों और क्या लिख रहा हूँ
एक फूल अच्छा लगता है मुझको
मैं उस के लिये ये सब लिख रहा हूँ
सारे ज़माने को तो मुझसे उल्फत नहीं
सिर्फ एक शख्स के लिये लिख रहा हूँ
हिज्र की तल्खी से तंग आकर मैं
सनम के नाम एक ख़त लिख रहा हूँ
वो मुझको चाहे या न चाहे
मैं तो सिर्फ अपना दर्द लिख रहा हूँ
शायद उस तक मेरी बात पहुँचे
इस उम्मीद में मैं ये ग़ज़ल लिख रहा हूँ ।
"सलमान सिद्दीकी"
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