चाँद को छत पे अपनी बुला लीजिये
आप पहलू में उनको बिठा लीजिये
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अच्छी लगती नही बद्लियां चाँद पे
अपने चैहरे से जुल्फें हटा लीजिये
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दर्द दहलीज़ पर छोड़कर हम चले
आखिरी खत हमारा उठा लीजिये
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रूह से रूह होती नही रू-ब-रू
जिस्म को दरमियां से हटा लीजिये
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इक वरक़ पर लिखा जो मैने लफ़्ज़-ए-इश्क़
उतरा काग़ज़ पे रंग-ए-हिना लीजिये
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✒......... *Rais pithampuri*