मंगलवार, 26 मई 2015

रोज़ नयी गज़ले नदीम सिद्दीक़ी के साथ

सिर्फ़ आने का  गुमाँ होता है !
उनका दीदार  कहाँ होता है ! !

ये बता दो ऐ हवाओं मुझको !
क्या मेरा ज़िक्र वहाँ होता है ! !

है मोहब्बत का ग़म अजीबो ग़रीब !
शक्ल से ही जो  अयाँ होता है ! !

ऐ मेरे दोस्त  मेरी ग़ज़लों मे  !
हाल दिल का ही बयाँ होता है ! !

रात दिन हम तड़प रहे हैं " नदीम " !
क्या कहें दर्द  कहाँ होता है ! !

- - - - नदीम सिद्दीक़ी - - - -

Previous Post
Next Post

About Author

0 comments: