शुक्रवार, 16 सितंबर 2016

बोलतीं है...

कभी हद से बढ़कर कहां बोलतीं है ।
मेरी  गज़ले  मेरी  जुबां  बोलतीं  है ।
.
तुम्हीं  से शुरू मेरे  दिल की है दुनिया
तुम्हें   ही  जमीं  आसमां  बोलतीं  है ।
.
कई नामचीन  चहरे  मरते है उस पे,
मगर वो  हमें अपनी  जां बोलतीं है ।
.
जला  करते  है  फूल  उनसे है सारे,
मेरा  नाम  जब  भी जहां बोलतीं है ।
.
हमें सिर्फ  वो  ही  नही जान  अपनी,
फलां और फलां और फलां बोलतीं है
.
Rais Pithampuri. .....