फिरकापरस्ती
इस शब्द के कई मायने है जिस तरह बस लोग समझ जाये।
लोगों ने तो इसको कई तरह से समझाया है। मगर मेरा मानना है कि जो दो लोगो में या दो समूह में भेदभाव करे उसीको फिरकापरस्त है।
आज कल कई लोग सोशल मीडिया पर वाह वाही लूटने के चक्कर में इस चीज को बड़ी तेजी से अपना रहे हैं और कुछ बेवकूफ और जाहिल लोग है जो इनका साथ भी दे रहे है।
मैं मुस्लिम हूँ और इस्लाम के वसूलों को मानने वाला भी। जहाँ तक मुझे मालूम और मेरे बुजुर्गो ने बताया है फिरकापरस्ती हराम है। इसका जिक्र क़ुरान शरीफ और हदीस में कई जगह ज़िक्र भी आया है।
आज कल तो लोग दाढ़ी, कपडे, दैनिक जीवन के प्रक्रिये से लोगों को अलग कर रहे है।
अब भला ऐसे लोग दीन का भला करेंगे जो फिरकबाज़ी करके लोगों को बाँट रहे हैं।
लानत है ऐसे लोगों पर और उनके ऐसे सोच पर।
दोस्तों फेसबुक पर ऐसे तमाम लोग है जो अपनी वाह वाही बनाने में ऐसा कर रहे है इनसे दूर रहे और उनके खिलाफ पुख्ता कदम भी उठाएं। ताकि वो ऐसा न कर सके और इंसानियत का भला हो।
ये सिर्फ एक मज़हब की बात नहीं है बल्कि एक इंसानियत की बात है , फिरकापरस्ती करके आप लोगों को बाँट रहे है ये कहाँ की इंसानियत है और किस मज़हब में लिखा है।
ऐसा जो भी लोग कर रहे हैं संभल जाओ। ऐसा करने से आप खुद गुनाह में शामिल हो रहे है।
कड़वी सच्चाई यही है की आज मुसलमानो ने अपनी दोनो किताबो यानि क़ुरान और हदीस को पढ़ना, सुनना लगभग छोड़ दिया है, बस जो भी कर रहे है या तो अपने बड़े बुज़र्गो से सुनकर या सीखकर कर रहे है या मुल्ला मोलवी जो बता रहे है कर रहे है, और वो मुल्ला मोलवी कौन है जो बड़े फक्र से कहते है "हम तो फ्ला इमाम के मानने वाले है" वो नही कहेंगे की "हम मुहम्मद (स. आ. वसललम) को मानने वाले है" इस्लाम को अपनाने वाले के लिये सब से बड़ी हक़ सिर्फ और सिर्फ मुहम्मद (स. आ. वसललम) की होने चाहिये, औरो की कही हुई बातें तो गलत "भी" हो सकती है लेकिन प्यारे नबी के कहे हुए जुमले गलत नही हो सकते।
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