सोमवार, 13 जुलाई 2015

एहसास के रिश्ते

रिश्तों की कोई निर्धारित परिभाषा नहीं होती। कोशिश भी की जाए तो शायद कोई ऐसी परिभाषा नहीं ग़ढ़ी जा सकती जो रिश्तों को गहराई से परिभाषित कर सके। आशय यह नहीं कि रिश्ता कोई उलझी हुई इबारत है जिसे समझाया नहीं जा सकता, बल्कि असलियत यह है कि 'रिश्ता' जीवन की सफलता का एक बड़ा मानक है, जिसे कुछ शब्दों में अभिव्यक्त नहीं किया जा सकता।

कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं जो पूरा जीवन बदलकर रख देते हैं, पर कुछ रिश्ते ऐसे भी होते हैं जिनके जुड़ने का अफसोस जीवन भर होता है और इस तरह के रिश्ते की कसक जीवनभर सालती रहती है।

सामाजिक जीवन में सामान्यतः रिश्तों को दो भागों में विभाजित किया जाता है। एक रिश्ता वह जो खून से बंधा होता है, दूसरा रिश्ता जो हम स्वयं गढ़ते हैं। भारतीय परिवेश में खून के रिश्तों को सबसे ज्यादा अहमियत दी जाती है और माना जाता है कि खून का रिश्ता ही सही मायने में जीवन का जुड़ाव होता है, और इससे बढ़कर रिश्ता होता है वैवाहिक संबंधों का।


इससे इतर जो रिश्ते होते हैं वे न तो खून से बंधे होते हैं और न उनमें सामाजिक दायित्वों का ही कोई बंधन होता है। दरअसल सही रिश्ते वे ही होते हैं, जो सारे बंधनों से मुक्त होकर सिर्फ दिल से बंधे होते हैं। इस बात से कई लोगों को एतराज भी हो सकता है, पर सच यही है कि खून के रिश्ते तो इत्तफाक से बनते हैं।
"रिश्ते खून के नहीं होते, रिश्ते एहसास के होते हैं अगर एहसास हो तो, अजनबी भी अपने होते हैं अगर एहसास ना हो तो अपने भी अजनबी होते हैं हैं बंधन रिश्तों का नही एहसास का होता है...अगर एहसास ना हों तो रिश्ते मजबूरी बन जाते हैं  वहाँ प्यार की कोई जगह नही होती...और वैसे भी रिश्ते,जिंदगी के लिए होते हैं,जिंदगी रिश्तों के लिए नही
 ऐसे एहसास के रिश्तों का कोई दायरा नहीं होता...ना शुरुआत और ना ही अंत ....कोई बंदिश नहीं होती...उस ओर से कोई फरमाइश नहीं होती ....होती है तो बस उस अन्जान से रिश्ते की मीठी सी भीनी भीनी खुशबू जो उसके चले जाने पर भी हमे उस पल तक महकाती रहती है ...जब तक हम उस अन्जान से रिश्ते से जुड़े रहते हैं
असल रिश्ता तो वह है, जो हम अपनी पूरी समझ-बूझ और परख के साथ तथा अपनी पसंद से बनाते हैं। फिर चाहे वह रिश्ता दो दोस्तों के बीच का हो या फिर प्रेमियों का या फिर पड़ोसियों के बीच का पारिवारिक-सा रिश्ता ही क्यों न हो। सभी में यह बात 'कॉमन' है। कोई भी रिश्ता इत्तफाक या सामाजिक दबाव में नहीं बना।


मन से मन के होते हैं कुछ रिश्ते,
सच्चाइयों की गहराइयों तक होते हैं कुछ रिश्ते.
मगर,
सच्चाई की जिसको समझ नहीं,
गहराई तक जिसकी पहुँच नहीं,
जाने क्या वो , वो क्या समझें,
मन से मन के ये रिश्ते.
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