सोमवार, 28 सितंबर 2015
रविवार, 27 सितंबर 2015
शनिवार, 26 सितंबर 2015
गुरुवार, 24 सितंबर 2015
बुधवार, 23 सितंबर 2015
सलवार
गज़ब का नज़ारा अपने बिहार में है !!
कई प्रेमी डुब चुके कई मझधार में है !!
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मेरी तो आंखें भर आई जब उसने कहा,
जल्दी करले मजनूँ कई ओर कतार में है !!
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क्यूं फिजूल घुमता है मजा ढुंढने पगले,
आनंदी खजाना तो मेरी सलवार में है !!
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हाथ हटा, उभार महज़ वक्ते बर्बादी है,
बेवकूफ असली स्वर्ग तो निचे उतार में है !!
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काश मुझे बिहारी भाषा का ज्ञान होता
कसम से पूरी राम कहानी छाप देता....
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Rahishpithampuri786@gmail.com
मंगलवार, 22 सितंबर 2015
इल्जाम
जल्द ही मैं रुखसतें सफ़र ले लूँगा ।।
दो गज़ जमीं में अंधेरा घर ले लूँगा ।।
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तु डरना नहीं खुदा जब सजा दे बेवफ़ाओ को,
मैं सारें "इल्जाम" अपने सर ले लूँगा ।।
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Rahishpithampuri786@gmail.com
बुधवार, 16 सितंबर 2015
यादों के झरोखों से
बात उन दिनों की जब मैं बारहवीं कक्षा पास करके छुट्टियाँ बिता रहा था और मौज मस्ती का मौसम था. मैं उस वक़्त बड़ा खुश था. यूँ ही छुट्टिय बीत रही थी. कुछ दिन बाद ख्याल आया यूँ ही वक़्त को जाया करना ठीक नही होगा मैंने दो जगह बच्चो को टूयशन देना शुरू किया. थोडा पैसा भी मिलने लगा और कुछ घन्टे उसी में बीत जाते थे.
फिर आया जुलाई और मैंने ग्रेजुएशन में एडमिशन ले लिया. इसी बीच मुझे एक जगह और पढ़ाने का मौका मिला. यही वो जगह थी जहाँ मेरी ज़िन्दगी ने एक नयी रुख ली थी. जिससे मैं बिलकुल अनजान था.
इसी जगह पर एक लड़की आया करती थी जिससे मेरा टकराव हुआ और फिर दोस्ती फिर प्यार.
मुझे शुरुआत में ये न मालूम था कि मैं इस लड़की से बेइंतहा मोहब्बत करने लगूंगा. हम दोनों साथ में ही पढ़ते थे एक ही क्लास में, दो सब्जेक्ट हमारे सेम थे. साथ में क्लास करते थे और आना जाना भी लगभग साथ में ही था. यानि ये भी कह सकते है पुरे दिन साथ में रहते थे.
हम दोनों अलग अलग बैच में थे फिर भी मैं उसीके बैच में पढता था . अगर सीधे सीधे लफ्जों में कहे तों ये कह सकते हैं हमारा प्यार पूरी परवान और उरूज़ पर था.
हम अक्सर फ़ोन पर चैटिंग किया करते थे और अपनी दिलो की बात किया करते थे. हम कई बार अकेले में मिलकर अपनी दिलो की बात किया करते थे और घंटो उसकी बाहों में गुज़ार दिया करता था. उस वक़्त दिल पर जो रूमानी का मौसम छाया हुआ और जो चाहतों का एहसास था उन को लफ्जों में कैद करना मेरे लिए बहुत मुश्किल है .
जैसे आज मुझे लिखने का शौक है उस वक़्त उसको लिखने का बहुत शौक था और वो लिखती और मुझे पढ़ाती मुझे बहुत अच्छा लगता. मैं सोचता काश मैं भी लिख पाता इन रिश्तो पर, प्यार पर लेकिन लिखने का मन नहीं होता. पर आज जो कुछ भी लिखता हु उसीके चाहतो और मोहब्बत की देन है. आज ये आलम है रिश्तो और एहसासों के अलावा किसी और मुद्द्दो पर लिखने का मन ही नही होता है. जब भी लिखने की सोचता हु बस यही ख्याल आता है कि सिर्फ इसी लड़की के बारे में लिखू. मैं हमेशा सोचता हु अबकी बार इन चीजों पर नही लिखना है मगर जब कुछ लिखने को शुरू करता हूँ तों उसकी यादें एक समुन्दर की लहर जैसे आकर मुझे थपेड़े मारने लगती है और अपने लहर में कैद कर लेती है, फिर लिखना मुश्किल हो जाता है.
खैर आज बहुत दिनों बाद लिखा और उसकी याद का एक झरोखा आँखों के सामने से गुज़रा जिसे मैंने शब्दों में बयां कर दी.
बुधवार, 9 सितंबर 2015
मना कर गई
शायर...... की हस्ती तबाह कर गई !!
अल्फाज़ों की मल्लिका दगा कर गई !!
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अफसोस मुंतजिर भी न हो सका उसका,
की वो लौट के आने को भी मना कर गई !!
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बारूद पर टिका था मोहब्बत का आशिया,
एक चिंगारी सुलगी सब धुंआ कर गई !!
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ना मुनासिब हुई जिंदगी, होठ सिल गए,
चली... बेवफ़ा की छुरी बेजुबां कर गई !!
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धडकनें संभाल ली, दिल को कैसे समझाऊँ,
की वो लौट के आने को भी मना कर गई
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Rahishpithampuri786@gmail.com
सोमवार, 7 सितंबर 2015
मुंशी
दिल कविता पर तो दिमाग फोटो पर रहता है !!
आंखों का जमघट उनकी उल्झी लटो पर रहता है !!
वो महारथी ही होगी शायद कहीं पर मुंशीगिरी की,
मेरे हर जुल्म का हिसाब उनके होठों पर रहता है !!
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काश बांसुरी सुनकर फिर से राधारानी दौड़ी चली आए,
ये कृष्णा आज भी उम्मीद में खड़ा पनघटो पर रहता है !!
मुद्दत से नही सोया न वो मुझको सोने देतीं है,
मुझको एहसास जैसे उनकी हर करवटो का रहता है !!
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मुझे यकीन है रिश्तेदार कभी तो मान जाएंगे तेरे-मेरे,
मेरी माँ ने कहाः था बड़ो का प्यार छोटों पर रहता है !!
इतनी हिम्मत मुझमें कहाँ की खिलाफ माॅ के जा सकूं,
समुद्र कितना भी गहरा हो निर्भर तटों पर रहता है !!
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शायर चीख पढता है
चुडियां चीख पढती है के पायल चीख पढता है ।
नामे मेहबूब से तो हर घायल चीख पढता है ।
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मेरे जख्मों को न कुरेदो दुनियां के आशिको
कविता नाम ले कोई तो शायर चीख पढता है ।
सानिया मिर्जा
कई दर्द सहने होते है शायरी बच्चों का काम थौडी है !!
चर्चा मेरी मोहब्बत का भी है हम अकेले बदनाम थौडी है !!
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शिकस्त जरूर खाई है पर जिंदगी ऐसे ना काटेंगे,
हम आशिक है आशिक यारो कोई हजाम थौडी है !!
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हम लफ्ज़ों के बादशाह है कविता हमारी धरोहर है,
किसी के इशारों की कठपुतली या गुलाम थौडी है !!
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हूनर रखतें है हार कर भी मिर्ज़ा जीत लाने का,
हम सोएब मलिक है यारों इंजमाम थौडी है !!
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कीजे
बे - घर है समंदर -ए- आंसू, सफ़र क्या कीजे !!
लौट आती है दुआएं बनकर जहर क्या कीजे !!
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तलाश-ए हक़ीम जारी है हाथों में दिल लिए हुए,
जख्मी जख्मी है मेरा खुन-ए जिगर क्या कीजे !!
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ठोकर-ए हुश्न मुझे महल से फुटपाथ तक ले आई,
वो अब भी नूरें नशीं है मोहतरम मगर क्या कीजे !!
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दर्द ज़बान पर उतार लूँ गर वो महफिल से निकल जाए,
उसे अल्फाज़-ए-कद्र नही कविता नज़र क्या कीजे !!
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दफना देना मेरी लाश उसको पता चलने से पहले,
वो मेरी आशिकी से बेखबर रही उसे खबर क्या कीजे !!
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रविवार, 6 सितंबर 2015
बारिश
ऐ उम्मतें नबी हाथ उठा, गुजारिश कर
ऐ आसमान जाकर खुदा से, शिफारिश कर
तडप रहे हैं लोग प्यास और गर्मी से
ऐ मेरे मौला रहमतों वाली बारीश कर
आमीन सुम्मा आमीन.....
बुधवार, 2 सितंबर 2015
आर वन फाईव
तु अगर ब्रेकिंग न्यूज़ है तो हम भी रिपोर्ट लाइव हैं !!
तु अगर चीप कार्ड है तो हम भी पेनड्राइव हैं !!
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अपने आशिक का आशिकी का गुरूर ठीक नहीं,
तु अगर हिरो की करिजमा है तो हम भी आर • वन • फाईव हैं !!
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Rahishpithampuri786@gmail.com
घढा
कुछ दिनों पहलें गांव गया था अपनी दादी के घर वहां सबसे लास्ट में दादी का मकान है और वहीं पर गांव का एकलौता कुंआ भी है ।
तो पैश है आज की नज्म उस शाम/राधा के नाम......
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वक्ते सहर शातिर निगाहों ने देखा एक हसीन मंजर !!
कुंएं को बडतें पैर, बलखाई कमर, रुखसार पर जुल्फों का खंजर !!
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वो लौटतें पहर उसका सिमटकर जानुओं में सिना छुपाना "हाय,,
एक हाथ से संभाला घडा दुसरें से संभाला दुपट्टा हुए अरमान बंजर !!
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