शनिवार, 16 मई 2015

रोज़ एक शायर आज गुलज़ार राजा अंसारी

इस तरह मेरा ख़याल करती है वो
दूर रहकर मुझसे बात करती है वो

चलते चलते मिल जाए राहो में गर
शरमाकर नज़रे झुका लेती है वो

हो जाऊ गर मैं नाराज़' कभी उससे
रात भर भूखी ही सो जाती है वो

पूछ बैठा कभी'आँख सूज जाने का सबब
गिरा है कुछ आँख में'कहके बात टाल जाती है वो

मुझे ख्वाहिश नही मशहूर होने की
खुश हूँ इसी मे' की मुझे पहचानती है

हो जाए गर नज़रो से ओझल कभी
"गुलज़ार"धड़कने मेरी बढ़ा जाती है वो

गुलज़ार राजा की कलम

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