गया दौर दाई का हॉस्पिटल में बच्चा होता है
मां रोती है दर्द से और बाप पैसों से रोता है
बाल गोपाल थे नाम हमारे थे मनके दिल के हम सच्चे
आजकल सब शैतां है अब डायपर में हगे बच्चे
आजकल के बच्चे देखो एक बार में 10 का खारे हैं
हमसे पूछो 1 रूपये में कितने दिन गुजारे हैं
दो दो सेटिंग रखते हैं जिस्मों की हवस मिटाने को
ओयो में जाते हैं लौंडे डिजिटल इश्क निभाने को
लडको के बाप के पैसों से डार्लिंग पार्लर में सजे धजे
मां गाली देके जगाती है बच्चों को दोपहर 1 बजे
दूसरी सेटिंग देख के लड़के पर जो लड़की अगर भड़की
फोटो वायरल मीडिया पे और फांसी लगा रही लड़की
तुम बाद में मर जाने के उसके, सोचो इश्क सच्चा था
अरे तुम्हारी डिजिटल मोहब्बत से दो हमारा प्यार अच्छा था
हमारे दौर में सिर्फ इश्क होता था इसके नाम पे नहीं खिलवाड़ होते थे
लड़कियां होती थी पापा की परियां और लड़के मां के राजकुमार होते थे