शुक्रवार, 28 अगस्त 2015

क्या लिखूँ

पर्दानशीं यार का जुदा अंदाज़ क्या लिखूँ ?
उजड़ी रियासत बिखरा काम काज़ क्या लिखूँ ?
कविता के रंगों में सिमट गया है वजूद मेरा,
फिके फिके से पढ गए अल्फाज़ क्या लिखूँ ?
.
नूरें यकीं था बेनूर ना होगी कभी लिखावट मेरी,
चमक उडतीं गई जाता रहा लिहाज़ क्या लिखूँ ?
महज़ कविता के लिए मैने दिल तक से बैर कर लिया,
रूठ गया मुझ से मेरा ही मिजाज़ क्या लिखूँ ?
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उसकी जिंदगी महफूज़ कर दूँ मेरी छोटी सी ख्वाहिश थी,
उसने पहले ही लिख दिया मुझे उम्रदराज क्या लिखूँ ?

डरता हूँ वो फिरकी न लेने लगे मेरा ईमान जानकर,
वो दिल्ली की जग्गू और मैं पाकिस्तानी सरफराज़ क्या लिखूँ ?

बेफिक्र हो जाओ मेरी आहट से हिजाब औढने वालियों,
के अब घायल हो चुका है शिकारी बाज़ क्या लिखूँ ?

Rahishpithampuri786@gmail.com

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