बात उन दिनों की जब मैं बारहवीं कक्षा पास करके छुट्टियाँ बिता रहा था और मौज मस्ती का मौसम था. मैं उस वक़्त बड़ा खुश था. यूँ ही छुट्टिय बीत रही थी. कुछ दिन बाद ख्याल आया यूँ ही वक़्त को जाया करना ठीक नही होगा मैंने दो जगह बच्चो को टूयशन देना शुरू किया. थोडा पैसा भी मिलने लगा और कुछ घन्टे उसी में बीत जाते थे.
फिर आया जुलाई और मैंने ग्रेजुएशन में एडमिशन ले लिया. इसी बीच मुझे एक जगह और पढ़ाने का मौका मिला. यही वो जगह थी जहाँ मेरी ज़िन्दगी ने एक नयी रुख ली थी. जिससे मैं बिलकुल अनजान था.
इसी जगह पर एक लड़की आया करती थी जिससे मेरा टकराव हुआ और फिर दोस्ती फिर प्यार.
मुझे शुरुआत में ये न मालूम था कि मैं इस लड़की से बेइंतहा मोहब्बत करने लगूंगा. हम दोनों साथ में ही पढ़ते थे एक ही क्लास में, दो सब्जेक्ट हमारे सेम थे. साथ में क्लास करते थे और आना जाना भी लगभग साथ में ही था. यानि ये भी कह सकते है पुरे दिन साथ में रहते थे.
हम दोनों अलग अलग बैच में थे फिर भी मैं उसीके बैच में पढता था . अगर सीधे सीधे लफ्जों में कहे तों ये कह सकते हैं हमारा प्यार पूरी परवान और उरूज़ पर था.
हम अक्सर फ़ोन पर चैटिंग किया करते थे और अपनी दिलो की बात किया करते थे. हम कई बार अकेले में मिलकर अपनी दिलो की बात किया करते थे और घंटो उसकी बाहों में गुज़ार दिया करता था. उस वक़्त दिल पर जो रूमानी का मौसम छाया हुआ और जो चाहतों का एहसास था उन को लफ्जों में कैद करना मेरे लिए बहुत मुश्किल है .
जैसे आज मुझे लिखने का शौक है उस वक़्त उसको लिखने का बहुत शौक था और वो लिखती और मुझे पढ़ाती मुझे बहुत अच्छा लगता. मैं सोचता काश मैं भी लिख पाता इन रिश्तो पर, प्यार पर लेकिन लिखने का मन नहीं होता. पर आज जो कुछ भी लिखता हु उसीके चाहतो और मोहब्बत की देन है. आज ये आलम है रिश्तो और एहसासों के अलावा किसी और मुद्द्दो पर लिखने का मन ही नही होता है. जब भी लिखने की सोचता हु बस यही ख्याल आता है कि सिर्फ इसी लड़की के बारे में लिखू. मैं हमेशा सोचता हु अबकी बार इन चीजों पर नही लिखना है मगर जब कुछ लिखने को शुरू करता हूँ तों उसकी यादें एक समुन्दर की लहर जैसे आकर मुझे थपेड़े मारने लगती है और अपने लहर में कैद कर लेती है, फिर लिखना मुश्किल हो जाता है.
खैर आज बहुत दिनों बाद लिखा और उसकी याद का एक झरोखा आँखों के सामने से गुज़रा जिसे मैंने शब्दों में बयां कर दी.
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