रविवार, 23 अगस्त 2015

मा

क्या यही मंजर देखना बाकी रह गया था मेरी माँ !!
सुबह ही तो तुझ को अस्पताल ले गया था मेरी माँ !!
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कुछ दैर और दम भरतीं तो मैं ममता से बेजार न होता,
पैसों का बंदोबस्त कर-कर आता हूँ कह गया था मेरी माँ !!
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हजारों रईश बसतें है इस कमजर्फ बस्ती में,
गरीबी का आसमान हम पर ही ढह गया था मेरी माँ !!
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थौडा दर्द और सह लेती के मैं रूपया भी लाया था,
मैं भी तो किस्मत की मार सह गया था मेरी माँ !!
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अफसोस कल पैसों की कद्र करता तो तु आज मेरे पास होती,
अमीरों की संगत में तेरा लख्ते-जिगर बह गया था मेरी माँ !!
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Rahishpithampuri786@gmail.com

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