शुक्रवार, 28 अगस्त 2015

काफी है!

खुन में उबाल है, धडकनों में सरसराहट काफी है !!
मोहल्ला बैचैन हो उठें, कविता के पैरों की आहट काफी है !!
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किसी की जान लेना कोई बड़ा काम नही हम दौनों के लिए,
उसकी कातिल निगाहें और हमारी लिखावट काफी है !!
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के वो निकलीं है बेनक़ाब फिर भिड़ होगी कफन की दुकान पर,
शहर में दंगे करवाने को उसकी मुस्कुराहट काफी है !!
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Rahishpithampuri786@gmail.com

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