रविवार, 30 अगस्त 2015

देते ।

राह तकतीं आंखों को, वो ख्वाब नहीं देते !!
ऑनलाइन होकर भी, वो जवाब नहीं देते !!
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हमने जब हक मांगा इंतज़ार की मजदूरी कर के,
जालिम कहने लगे, हम मजनुओं को हिसाब नहीं देते !!
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बेशक मेरी हर कविता फिजूल है, मेरी मोहब्बत की तरह,
हमसे ही शोहरतें कमाकर भी वो हमें खिताब नहीं देते !!
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मयखाने के दरबान ने कल ये कहकर खिलाफ़त कर दी,
हम उजड़ी रियासत के बिखरे आशिकों को शराब नहीं देते !!
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ईश्क की बेफिक्र मट्टी पलीत कर दे शख्सियत पर न उंगली न उठा,
हम दिल तो आसानी से दे देते है पर अपना रूवाब नहीं देते !!
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Rahishpithampuri786@gmail.com

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