शुक्रवार, 5 जून 2015

**बेवफा यार**

खुद को बावफा मुझे बेवफा का इलज़ाम दिया है
हाँ उसने ये ज़ख्म मुझे ज़माने में सरेआम दिया है

शबे तन्हाई सुबह की याद शाम की बेबसी
फ़राज़ ये सारे दर्द उसने मुझे इनाम दिया है

मैं ग़म की उस दहलीज़ पे आके बैठा हूँ इस वकत
हर लम्हा याद-ए-जलन का उसने काम दिया है

अब मिलता है तो बहोत मज़ाक बनाता है मेरा वो
जिसने अरसा पहले दिल अपना मेरे नाम किया है

हो सके तो मुहब्बत से तोबा कर लो यारों
किसी ने बेइन्तहां भरे बाजार में मुझे बदनाम किया है

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