शनिवार, 6 जून 2015

पगली

8 दिनों की मेहनत के बाद आखिरकार में कामयाब हुआ,
पैश है एक नज्म.....

■☆□☆□ पगली □☆□☆■

□☆हवाओं जाकर ऐलान कर दो फिरकापरस्ती में,
ये मौत का तूफां रूकेगा उनकी बस्ती में ।□☆

इक हसीन दास्तां, किस्सा सुनाता हूँ आवाम,
दौर-ए-गर्दीश ने जिसको दे दिया "पगली" का नाम ।

बेबस, लाचार, असहाय "पगली" रहती थी ।
अपनी धुन मे गुनगुनाती कुछ कभी न कहती थी ।
जुल्म-ए-तकदीर सारे हंस के "पगली" सहती थी ।
खून के आँसूओं से हरपल आंख उसकी बहती थी ।

जिल्लत जमाने की बेचारी जाने कितनी झेलतीं ।
टुटी चप्पल उलझे-उलझे बालों से वो खेलतीं ।
फट चुके थे कपड़े मुरझाए से सारे होठ थे ।
मौका-ए-हवस में शहर के सारे रंगी कोट थे ।

क्या कहूँ के यार मोटरकार जब वो देखतीं ।
फौरन ही पत्थर उठाकर कार पर वो फेंकती ।
मैंने चाही जाननी उसकी इस हालत की वज़ह ।
पहूंचा उसके पास और कहने लगा कुछ बेवज़ह ।

देखा उसको गौर से वो बडबडाने थी लगीं ।
मेरे आशिक आऊँगी ये राग गाने थी लगीं ।
तु ही मेरी जान है तु ही मेरे दिल का करार ।
एक ही बस शेर "पगली" गा रही थी बार-बार ।

□☆हवाओं जाकर ऐलान कर दो फिरकापरस्ती में,
ये मौत का तूफां रूकेगा उनकी बस्ती में ।□☆

लोगों से मैंने सुना क्यों खो चुकी वो होशों हवास ।
पहले उसके जिस्म पर था मोहब्बत के रेशों का लिबास ।
Rahish नाम के लड़के पर लुटाती थी अपना वो शबाब ।
उसके साथ जिने के सपने सजाती थी वो जनाब ।

घर से निकली गुल से "गुलनार" खिलने के लिए ।
पहुंच गई बाजार को वो उससे मिलने के लिए ।
मिलने में सडक का ट्राफिक मजबूरी करता था बयां ।
इस तरफ "गुलनार" थी और उस तरफ था नौजवां ।

महबूबा के दिदार को मन में तूफां था उठ रहा ।
ट्राफीक में लाचार आशिक मिलने को था घुंट रहा ।
बेसब्र प्यार का मारा जब था बिच रोड से जा रहा ।
सामन मौत का कार में था बैठ करके आ रहा ।

मजबूरी और तड़प में बढाए आगे जब उसने कदम ।
खून के लाल धब्बों में लिपट गया वो मोहतरम ।
मौत की जालिम तलवार आखिरकार चल गई ।
तेजी से आई कार और आशिक को कुचल गई ।

छोड़कर "गुलनार" को rahish जब जाता गया ।
बस तभी से लब पर उसके आ गए थे ये बयां ।

□☆हवाओं जाकर ऐलान कर दो फिरकापरस्ती में,
ये मौत का तूफां रूकेगा उनकी बस्ती में ।□☆

तब से चखना चूर थे आंखों के सारे ही ख्वाब ।
बड़ गई दिवानगी जाता रहा हुश्नो शबाश ।
फिर किसी दिन मुझको एक मंजर नज़र आया ।
कार को पत्थर मारने का फीर से पागलपन उतर आया ।

तेजी से जा रही थी दुर पगली से वो कार ।
पगली भी दौडी जा रही थी करने को अब उसपर वार ।
रोड पर शायद खडा था मौत का वो बादशा ।
आने वाला है नज़र अब फिर से कोई हादसा ।

दोस्तों ये दास्तां अब खत्म हो जाने को है ।
और हमेशा के लिए "पगली" भी सो जाने को है ।
पडकर मेरे यार बेशक बेचैनी तेरी बड़ गई ।
पिछे से आई कार और "पगली" के उपर चड गई ।

जिने मरने का अपना वादा वफा वो कर गई ।
बीच चौराहे में rahish नाम लेकर मर गई ।

□☆हवाओं जाकर ऐलान कर दो फिरकापरस्ती में,
ये मौत का तूफां रूकेगा उनकी बस्ती में ।□☆

Rahishpithampuri786@gmail.com

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