मंगलवार, 16 जून 2015

ढेरों पैसा कमाने से सफल इन्सान नहीं बन जाते

व्यक्ति की, सदैव अतृप्त रहने वाली भौतिक कामनाएं उसके सात्विक चित्त और अमूल्य चरित्र को पतन के गर्त में पहुंचा देती हैं। रुपये-पैसे के आधार पर खड़ा कृत्रिम जीवन जीने की अंधी लालसा से ही हमारी अंदर की शांति लुप्त हो रही है। कुछ प्राप्त हो गया तो प्रसन्न हो गए, कुछ छिन गया, नहीं मिला तो दुखी हो गए। ढेर सारा पैसा कमाने से हम सफल इन्सान नहीं बन जाते। पैसा कमाने के साथ उसका मकसद भी नेक होना चाहिए, क्योंकि एक अच्छा मकसद ही हमंे हकीकत में अमीर बनाता है। हम सच्चे अमीर तभी बनते हैं, जब लोग हमारा सम्मान करते हैं, हम पर भरोसा करते हैं। वास्तविक आनंद की अनुभूति केवल वे ही कर सकते हैं, जिन्होंने व्यर्थ के आकर्षण से अपने को मुक्त कर लिया हो। संत के इन वचनों से सेठ को शांति का रास्ता मिल गया।

संयम अपने आप नहीं आता, उसके लिए साधना करनी पड़ती है। लालसाएं अपने आप कम नहीं होतीं, उनके लिए प्रयास करना पड़ता है। जीवन की चिंता और पदार्थ के मोह से अपने आप मुक्ति नहीं होती, खुद को मुक्त करना पड़ता है।
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