रविवार, 28 जून 2015

कही......

तेरे रोम,रोम में आशिकी उतर न जाएँ कहीं ।
बचा के रखना ये रातें निखर न जाएँ कहीं ।

वक्त के दानव ने कई जिस्म और घमंड चुर किए,
मोतियों की तरह तेरा भी हुश्न बिखर न जाएँ कहीं ।

मेरी चाहत के बिस्तर को नीलाम करने वाली,
दुआ कर के मेरी बद्दुआ संवर न जाएँ कहीं ।

रोक लो शोरगुल अखबारों को गर् उसकी विदाई करनी है,
कल उसकी शादी में मेरी मौत की खबर न जाएँ कहीं ।

Rahishpithampuri786@gmail.com

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