रविवार, 14 जून 2015

क्या है ☆★

लौंडे चिकने-चपट दिख रहे
.... इतनी सालों को मस्ती क्या है ।
बन जाते हैं खस्सी बकरें
.... एकाध मेमनी इनसे फंसती क्या है ।

हमें भी एक खुबसूरत, हंसीं, जवां
.... फुलझड़ियां भा गई है,
हमें इससे क्या मतलब
.... उसकी फिरकापरस्ती क्या है ।

कल रात जब कलाई थामी उसकी
.... तो खामखां चीख पडी़ ।
कमबख्त चुडियां न जाने
.... उसकी लगतीं क्या है ।

जवाब ए इजहार के बजाय
.... मुसकुरा कर जाने लगी
हमने तपाक से बाहों में भर कर कहा
.... जवाब दे साली हंसती क्या है ।

उसके सुर्ख होठ मुझपर
.... बादल बनकर गरजे
कमीने छोड़ मुझे दो टके के
.... शायर तेरी हस्ती क्या है ।

मैं शागिर्द ए कामदेव हूँ
.... नाम और असलीयत से रईश
नोटों के बंडल से तेरा मुंह लदा दुंगा
.... पैसा ही लेगी ना बरसती क्या है ।

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