गुरुवार, 4 जून 2015

*ग़ज़ल*

कभी तो ऐसे भी' नखरे मुझे दिखाए ग़ज़ल
ज़रा सी बात पर' बच्चों सी रूठ जाए ग़ज़ल

ये नस्ले नो भी गज़ब है'समझ ना पाए ग़ज़ल
अगर किताब में पहुंचे तो'धूल खाए ग़ज़ल

हमेशा मैं ही ग़ज़लो को ग़ज़ल सुनाता हूँ
कभी तो ऐसा हो' मूझको ग़ज़ल सुनाए ग़ज़ल

कभी सताए मुझे' काफ़िए नए देकर
कभी रदीफ़ ने दे के आज़माए ग़ज़ल

कभी तो मेकादाए मीर और ग़ालिब से
छलकता जाम अदब का'मुझे पिलाए ग़ज़ल

हमेशा मेरी तो यही' कोशिश रही "अकरम"
ग़ज़ल पढ़ो तो' ज़माने में फेल जाए ग़ज़ल

राईटर~अकरम नगीनवी

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