गुरुवार, 18 जून 2015

रिश्तो की हत्या

आज के हमारे युवाओं को न तो भविष्य की तनहाइयों की फिक्र है, न हीं जिंदगी की वीरानियों की परवाह, क्योकि वो आज में जीता है। इसी सोच के चलते वो रिश्तों की अहमियत को इस कदर नजरअंदाज कर रहा है। यही वजह है कि न अब रिश्ते टिकाऊ होते है, न ही होता है उनमें कमिटमेंट। किसी भी रिश्ते की बुनियाद होती है प्यार और विश्वास। यदि ये दोनों ही चीजें रिश्ते में न हो, तो वो रिश्ता महज समझौता बनकर रहा जाता है। आज हम जिस तेजी से रिश्ते बनाते है, उसे तेजी से उन्हे तोड भी देते है, क्योकि रिश्ते बनाते समय हमें खुद ही नहीं पता होता है कि आखिर ये रिश्ता कब तक टिकेगा। पिछले 10 सालों में तलाक के मामले कुछ शहरों में दोगुने हो गए तो कही-कही इनमें तीन गुना बढोत्तरी हुई है। जहां 90 के दशक में तलाक के औसतन 1000 मामलें हर साल सामने आते थे, वहीं अब ये संख्या बढकर 9000 हो गई है। अधिकतर मामलों में सामंजस्य की कमी या पार्टनर की बेवफाई को ही तलाक का आधार बनाया गया। बदलती लाइफस्टाइल, बढती प्रोफेशनल आकांक्षाएं, न्यूक्लियर फैमिली, रिश्तों में बढती अपेक्षाए ही इन बढती तलाक दरों की मुख्य वजहें हैं । आज महिलाएं भी तलाक की पहल करने में पीछे नहीं है। अगर रिश्ते में जरा-सी भी कमी या अनबन नजर आती है, तो बयाय कोई समाधान निकालने के तलाक को ही अपनी आजादी का आसान रास्ता मानकर लोग रिश्ते तोडने में हिचकते नहीं। अपनों का साथ, प्यार का एहसास जिंदगी को खुशनुमा बना देता है, जीवन में थोडी-बहुत तकरार भी जरूरी है, इसी का नाम तो जिंदगी है, वक्त रहते जिंदगी को संभाल लिया जाए तो बेहतर है, वरना ऎसा न हो कि हम जब गिरे, तो कोई थामनेवाला ही न हो, हम जब रोएं तो किसी का कंधा सिर रखने के लिए न हो।

आज के दौर में रिश्तो में कडवाहट डालने काम ये सोशल मीडिया बखूबी कर रही है...ये ऐसा इसलिए क्यूंकि लोग ऐसे मामले में सेंटी हो जाते है ऐसे मामलो में...
एक उदाहरण देके बताता हूँ.....
जैसे कोई एक शादी शुदा जोड़ा है जो काफी खुश है और जीवन अच्छे से चल रही है. जो पति है वो फेसबुक यूज़ करता है अब जाहिर सी बात है कई दोस्त भी बनेंगे और बाते भी होंगी उसमे महिलाएं भी हो सकती है...हो सकता है किसी महिला से कोई रिश्ता बन जाये जैसे की बहन का.
अब जब ये चीज़ पत्नी देखती है तो वो बुरा मानती है ऐसा अक्सर सभी पत्नियाँ करती है...अब वो लाख समझाए मगर पत्नी नहीं मानती है और इसी में बात तलाक तक आ जाती है...
अब या तो फेसबुक का इस्तेमाल ही छोड़ दे या फिर......
यही चीज़ उन पत्नियों के साथ भी होता है अगर वो फेसबुक का उपयोग करती है....
इसलिए जो भी हो हर चीज़ को गहराई से देखनी चाहिये...रिश्तो में शक जैसी चीज़ नहीं होनी चाहिए, रिश्तो की अहमियत को समझे और उसको निभाए भी....इस दौर की तो ये हालत हो गयी है कोई रिश्ता बनाना ही नहीं चाहता....चाहे वो दिल्लगी का हो या दोस्ती का....
हर रिश्ता विश्वास पर टिका होता है। आपको अपने साथी पर विश्वास करना चाहिए। अगर आपके रिश्ते में विश्वास नहीं होगा तो आप चाहकर भी एक दूसरे के करीब नहीं आ पांएगे। विश्वास के बिना कोई भी रिश्ता नही टिक सकता। किसी भी नतीजे पर पहुंचने से पहले एक मौका जरूर दे।
आप कितने ही प्रैक्टिकल हो, लेकिन जीवन में किसी मोड पर एक साथी, एक हमसफर की जरूरत जरूर महसूस होती है। जीवन का ये सूनापन फिलहाल ग्लैमरस लाइफस्टाइल और आर्थिक कामयाबी के बीच नजर न आ रहा हो, लेकिन कहीं ऎसा न हो कि जब ये अकेलापन नजर आने लगे, तब तक देर हो चुकी हो।


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