........मेरी पड़ोसन के "नाम,,
बादलों कहर बरसाओ के आज खता सरेआम कर लूँ ।
उसकी बाहों में ऐसा उलझूं के सुबह से शाम कर लूँ ।
बारीश में भिगकर वो तपती दहलीज़ पर बैठी है,
हो इजाजत तो सामने अपना मुकाम कर लूँ ।
थक गया हूँ उसका भिगा बदन निहारते-निहारते,
वो एक इशारा कर दे के थोडा आराम कर लूँ ।
औकात है हुश्न सिर्फ़ बिखरे बिस्तरों की अमानत है,
बरसने का वादा करो तो छतरी का इंतजाम कर लूँ ।
उतार फेंको इन हिफाजत के बुढे पहरेदारों को,
ताकी नौजवां रियासत मै अपने नाम कर लूँ ।
Rahishpithampuri786@gmail.com
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