रविवार, 9 अगस्त 2015

तडिपार

सच्ची कहानी.....
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मां बचपन में चल बसी, बाप ने जीना दुश्वार कर दिया ।
स्कूल जाने की उम्र में मजबूरी ने लोहार कर दिया ।
जरूरत ही नहीं पड़ी मां के मखमली आंचल की,
जमाने की ठोकरों ने मुझको होशियार कर दिया ।
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बचपन बिता आई जवानी हमनें खौफजदा बाजार कर दिया ।
भट्टी की आंच ने फौलादी सीना, हाथों को हथियार कर दिया ।
तडपते भुखें प्यासे लोगों की हमसे चीख पुकार सुनी न गई,
सियासत में कैद गरीबी को हमनें अपने दम पर फरार कर दिया ।
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चंद रूपयो से भरे सूटकेस ने ईमान ए जज तार-तार कर दिया ।
भरी महफिल में लुटी कानूनी इज्ज़त इंसाफ़ का बलात्कार कर दिया ।
बिक गया वकील, गवाह, सबूत और तराजू सच्चाई का,
मैं तो मदद के लिए बढ़ा था जूर्म की राह अदालत ने तड़ीपार कर दिया ।
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Rahishpithampuri786@gmail.com

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