बुधवार, 19 अगस्त 2015

क्या करें

जब तकदीर रूठ जाएं, तो इंसान क्या करें ?
सहमें हुए हैं होंठ और जुबान क्या करें ?
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तपती जमीन की ही दुआ थी के उसकी प्यास मिट जाए,
अब आ गई अगर सुनामी तो बेकसूर आसमान क्या करें ?
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मेरा घर बहा मेरा रूपया,पैसा चारों ओर ये रांडीरोना है,
के भई बह गई हमारी भी दिलों जान क्या करें ?
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ऐलान हो चुका मुआवजे के दावेदार नुकसान दर्ज करें,
अरे, कमबख्तों, बह गई हमारी कविता की दुकान क्या करें ?
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मैंने जब तोहमतें भरी उंगली किस्मत पर उठाई तो उसने कहा,
अबे, जब कविता खुद नहीं राजी तो बिचवान क्या करें ?
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Rahishpithampuri786@gmail.com

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