सोमवार, 17 अगस्त 2015

कहां है

ये दौर जिस्म फरोशी है, सच्ची मोहब्बत का जमाना कहाँ है !!
यहाँ बस गंवाना ही गंवाना है, कुछ भी कमाना कहाँ है !!
कल तनहाइयों में मुझको घैर मेरे अरमान पूछतें है,
तेरी आशिकी की कमाई दौलत, कविता का खजाना कहाँ है !!
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मनादी शहर में कर दो, हम घुटनो के बल चलें आंऐ,
वो इक इशारा करें, जाकर उन्हें मनाना कहाँ है !!
मैं बुखारें ईश्क का मरीज हूँ, कभी भी मर जाऊंगा,
आकर खबर ले लो मेरी जिंदगी का ठिकाना कहाँ है !!
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मेरी नज़रों से आकर देख खडा है फरिश्ता मौत का दहलीज़ पर,
वो कोई रिश्वत ले तो दे दे, मेरे पास कोई बहाना कहाँ है !!
खुदा जाने चंद सांसों में, ये कैसे पुछ लिया उसने,
तुम जहाँ कहोगे ताजमहल बना दुंगी, कहो तुम्हें दफनाना कहाँ है !!
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मुझे मरने का गम नहीं, मैं उस पल खुशी से झूम उठता हूँ,
लोग जब उससे पूछतें है, तेरा वो पागल दिवाना कहाँ है !!
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Rahishpithampuri786@gmail.com

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