सोमवार, 10 अगस्त 2015

कविता

गुनाह है इसके कितने ही पर बेगुनाह है "कविता" !!
पनाह दी है इसने चाहने वालों को पर बेपनाह है "कविता" !!

बसी है यहीं मेरी धड़कन में "सितारों" का उजाला बनकर,
दिल धड़कता है मेरी 'जां, के लिए और मेरी 'जां, है "कविता" !!

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