बुधवार, 1 जुलाई 2015

दिवाना.....

ऐसे बेनक़ाब गलियों से न आना - जाना कर ।
मेरे मचलते अरमानों को न और मस्ताना कर ।

तेरा रुखसार मेरे मकां के रंगी कपडे़ न उतार लें,
बेजान इन दीवारों को ना और दिवाना कर ।

Rahishpithampuri786@gmail.com

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