मंगलवार, 21 जुलाई 2015

माॅ

वक्त के दानव ने पल पल मेरा अक्स झिंझोड़ा था ।
बेरहम मौत के फरिश्तें ने बेऔलाद बना के छोड़ा था ।
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क्यों यकीन रखुं में हाथों की फर्जी लकीरों पर,
इन्हीं हाथों में एक दिन मेरी "माँ,, ने दम तौडा था ।
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चादर ए गरिबी ने हर अरमान सिकोड़ा था ।
अमीरी ने पैरों तले किमती लहू निचोड़ा था ।
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मिली कामयाबी मुझको तो हाथों में दबोच लुंगा,
इन्हीं हाथों में एक दिन मेरी "माँ,, ने दम तौडा था ।

Rahishpithampuri786@gmail.com

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