रविवार, 19 जुलाई 2015

जुगाड़

ओए.....
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तुम कह दो तो जिन्दगी से अब "खिलवाड़,, करूं ।
तुम कह दो तो बेजान अहसासी पत्थरों को "पहाड़,, करूं ।
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कब से पंचर खड़ी है मेरी तलब ए हुश्न की गाड़ी,
तुम कह दो अब इस "जैक,, में "राॅड,, करूं ।
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तुम्हारी माँ की जुबान और भाई के हाथ बहुत चलते हैं,
तुम कह दो तो इन्हें काट कर "कबाड़,, करूं ।
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मुद्दत हुई तेरे जिस्म के उतार चढ़ाव पर उंगलियां फिराए,
तुम कह दो आज कमरे का "जुगाड़,, करूं ।
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छुप कर रहा करो मेरे दिल में पडोसन तांका झांकी न कर लें,
तुम कह दो अपनी धड़कन की "आड़,, करूं ।
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Rahishpithampuri786@gmail.com

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