मंगलवार, 21 जुलाई 2015

हकीम दानिश मंज़िल की तलाश

के आज भी पूरी रात हो गयी जागते हुए।
आज फिर थक गया ज़िन्दगी से भागते हुए।
न मंज़िल का पता है न किसी राह का
बस वक्त गुज़र  रहा है दिन काटते हुए।
हकीम

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