शनिवार, 4 जुलाई 2015

कलम

ओए.....
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अपनी अधुरी आशिकी की "कहानी,, लिख रहा हूँ ।
खुद को पागल और उसको "दिवानी,, लिख रहा हूँ ।
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लहू तो अपना ही बहा जब-जब तलवार-ए ससुर उठीं,
फिर भी अपना खुन टुच्चा और उसका "खानदानी,, लिख रहा हूँ ।
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वैसे तो सितमगर है पर "दिलबरजानी,, लिख रहा हूँ ।
न भरने वाले जख्मों को उसी की "निशानी,, लिख रहा हूँ ।
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मेरे तकिये को आंसुओं का समंदर बनाने वाली,
मैं उसी समंदर में पानी से पानी पर "पानी,, लिख रहा हूँ ।
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खाक हो चुकी अपनी बुढी; "जवानी,, लिख रहा हूँ ।
ऊजडी रियासत पडोसन की "मेहरबानी,, लिख रहा हूँ ।
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यूँ तो मेहनत दोनों की थी मेरे प्यार के "ताजमहल,, में,
फिर भी खुद को मजदूर और उसे "रानी,, लिख रहा हूँ ।
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Rahishpithampuri786@gmail.com

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