मंगलवार, 14 जुलाई 2015

माॅ

बुढी उंगलियों को अंगारों पर जलते देखा है ।
चुल्हे पर खाने संग ममता उबलते देखा है ।
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खुशनसीब है हर वो बेटा कायनात में देखने वाला,
जिसने दवाओं से नहीं दुआओं से परिवार संभलते देखा है ।
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आंगन में सुरज गलियों में चांद उतरते देखा है ।
गरीबी की औढ नी में अम्मीजान संवरते देखा है ।
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कहती थी बेटा वक्त बदलता है हर इंसान का,
हमने तो वक्त के साथ "इंसान,, बदलते देखा है ।
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भुख, प्यार में गरीबी के आंसू उमडते देखा है ।
अमीरी के कदमों तले गरीब जान निकलते देखा है ।
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कैसे मिटाऊं अपनी भुख एक और ग्लास पानी से,
पड़ोसी के बच्चों को अभी दस्तरखान निकलते देखा है ।
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जुल्मीं ठेकेदारों से जहान निखरते देखा है ।
मजबूर मेरी माँ का हर अरमान बिखरते देखा है ।
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कभी तलाश करना मेरी गुंगी आंखों में वो मंजर,
इन्हीं आंखों से मैंने अपनी माँ को मरते देखा ।
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Rahishpithampuri786@gmail.com

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