गज़ल के तर्क से उठता धुआँ पहचानती है वो |
मेरे हर शेर को अपनी हकीकत मानती है वो |
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उन्हें कोई न सिखलाए दिलों से खेलना 'अय्युब,
वफाओं से मेरी खिलवाड़ करना जानती है वो |
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